यह मामला भारत के संवैधानिक ढांचे और तीनों स्तंभों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – के बीच संतुलन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में न्यायपालिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली और उसके विशेषाधिकारों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 142 को लेकर चिंता जताई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्तियां दी गई हैं। उपराष्ट्रपति ने इसे लोकतंत्र पर 24×7 उपलब्ध “न्यूक्लियर मिसाइल” करार दिया।

यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में राष्ट्रपति और राज्यपालों को यह निर्देश दिया है कि वे विधानसभा से पास बिलों पर तय समयसीमा में निर्णय लें – या तो मंजूरी दें या वापस लौटाएं। इस फैसले को कई लोगों ने विधायिका को मजबूती देने वाला कदम माना है, वहीं उपराष्ट्रपति ने इसे न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप बताया।

राज्यसभा के छठवें बैच के इंटर्न्स को संबोधित करते हुए धनखड़ ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से करोड़ों की नकदी बरामदगी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह घटना 14-15 मार्च की रात को घटी थी, लेकिन इसकी जानकारी मीडिया में 21 मार्च को ही सामने आई। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इस तरह की देरी न्यायसंगत और स्वीकार्य है? क्या इससे न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगते?

धनखड़ ने यह भी कहा कि भारत के राष्ट्रपति की भूमिका अत्यंत गरिमामयी होती है, और वे संविधान की रक्षा, संरक्षण और संरक्षण की शपथ लेते हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को अदालतों से निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए। यह बयान उस पृष्ठभूमि में आया है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बिलों को पास करने में हो रही देरी को लेकर चिंता जताई थी और इसे गैर-संवैधानिक करार दिया था।

यह विवाद अब संविधान की व्याख्या को लेकर एक व्यापक बहस को जन्म दे चुका है। सवाल यह है कि क्या न्यायपालिका की सक्रियता लोकतंत्र की रक्षा है या कार्यपालिका और विधायिका के अधिकारों में हस्तक्षेप?

इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में संवैधानिक संस्थानों के बीच शक्ति-संतुलन को लेकर नई बहस छिड़ चुकी है। उपराष्ट्रपति के इस बयान ने निश्चित ही राजनीतिक और संवैधानिक हलकों में हलचल मचा दी है, और अब देखना यह होगा कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका इसका जवाब किस तरह देती है और आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या निष्कर्ष निकलता है।

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