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**Thackeray Cousins Reunion? Raj and Uddhav Hint at Truce Over Marathi Identity Concerns**

“महाराष्ट्र सबसे ऊपर”: राज और उद्धव ठाकरे के बीच सुलह के संकेत, मराठी अस्मिता को बचाने की मुहिम में एकजुट होने की संभावना

नई दिल्ली, 19 अप्रैल 2025:
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आता दिख रहा है। लंबे समय से राजनीतिक रूप से अलग राह पकड़ चुके राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने अब सार्वजनिक मंचों से सुलह और एकजुटता के संकेत दिए हैं। यह संकेत ऐसे समय में आए हैं जब महाराष्ट्र की मराठी अस्मिता, भाषा और सांस्कृतिक पहचान पर कथित हमलों को लेकर दोनों नेताओं ने चिंता जाहिर की है।

पृष्ठभूमि

साल 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई थी। इसके बाद से ठाकरे परिवार के दो धड़े — एक ओर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (UBT) और दूसरी ओर राज ठाकरे की MNS — राजनीतिक रूप से आमने-सामने खड़े रहे हैं। लेकिन अब यह परिदृश्य बदलता दिख रहा है।

क्या कहा राज ठाकरे ने?

हाल ही में अभिनेता-फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के साथ एक पॉडकास्ट में बातचीत करते हुए राज ठाकरे ने कहा:

“उद्धव और मेरे बीच जो मतभेद हैं, वो व्यक्तिगत नहीं बल्कि राजनीतिक रहे हैं। लेकिन आज जब महाराष्ट्र की पहचान को ही खतरा है, तब यह मतभेद राज्य के हित में नहीं है।”

राज ठाकरे ने स्वीकार किया कि विभाजन ने मराठी राजनीति को कमजोर किया है, और यह समय ‘एक होकर लड़ने’ का है, न कि एक-दूसरे को नीचा दिखाने का।

उद्धव ठाकरे का संदेश

दूसरी ओर, एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा:

“राजनीति आती-जाती रहती है, लेकिन महाराष्ट्र की अस्मिता सबसे ऊपर है। आज हमें एक स्वर में बोलने की ज़रूरत है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां अपने गौरव को महसूस कर सकें।”

यह बयान संकेत देता है कि उद्धव ठाकरे भी अब पारिवारिक और वैचारिक सुलह के लिए तैयार हैं, बशर्ते मुद्दा ‘महाराष्ट्र की रक्षा’ से जुड़ा हो।

सियासी मायने और संभावनाएं

राज और उद्धव ठाकरे का एक मंच पर आना या कम से कम एक जैसे सुर में बोलना, महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है।

  • मराठी वोट बैंक, जो इन दो दलों के बीच बंटा हुआ था, अब एकजुट हो सकता है।
  • भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए यह नई रणनीतिक चुनौती बन सकता है।
  • महाराष्ट्र में मराठी बनाम बाहरी की बहस फिर से गर्म हो सकती है, जिसका असर मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव से लेकर 2029 के लोकसभा चुनाव तक दिख सकता है।

निष्कर्ष

ठाकरे परिवार की यह संभावित एकजुटता केवल एक पारिवारिक मेल-मिलाप नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक दिशा में बड़ा संदेश है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह सुलह केवल मंचीय बयान तक सीमित रहेगी या सचमुच कोई नई राजनीतिक धारा जन्म लेगी — जहां “महाराष्ट्र सबसे पहले” नारा, केवल भाषण नहीं, बल्कि रणनीति का केंद्र बनेगा।

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