होसे मुजिका, जिन्हें “दुनिया के सबसे विनम्र राष्ट्रपति” के रूप में जाना जाता है, का हाल ही में 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनका जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है—एक क्रांतिकारी से लेकर राष्ट्रपति बनने तक की यात्रा, जिसने पूरी दुनिया को सादगी और मानवता का पाठ पढ़ाया।
20 मई, 1935 को उरुग्वे की राजधानी मोंटेवीडियो में जन्मे होसे मुजिका एक साधारण किसान परिवार से थे। उनके पिता एक छोटे किसान थे जिनका निधन मुजिका के बचपन में ही हो गया था। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और किशोरावस्था में ही वामपंथी राजनीति से जुड़ गए। 1960 के दशक में उन्होंने टुपामारोस नामक शहरी गुरिल्ला समूह में शामिल होकर सैन्य शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। यह समूह अपहरण और डकैती जैसे क्रांतिकारी कार्यों में शामिल था, जिनका उद्देश्य तानाशाही शासन को समाप्त करना था।

1972 में मुजिका को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 14 वर्षों तक जेल में अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया। उन्होंने कई साल एकांत कारावास में बिताए, जहां उन्हें ज़मीन के नीचे छोटे-छोटे कोठरी में रखा गया। उन्हें नियमित रूप से शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। मुजिका ने बाद में बताया कि वह समय उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद कठिन था। वे कई बार पागलपन के कगार पर पहुँच गए थे और अकेलेपन से लड़ने के लिए चींटियों से बातें किया करते थे।
जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने हथियार छोड़ लोकतांत्रिक राजनीति की राह अपनाई। वे 1990 के दशक में संसद सदस्य बने, फिर कृषि मंत्री और आखिरकार 2010 से 2015 तक उरुग्वे के राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने कभी सादगी का साथ नहीं छोड़ा। वे सरकारी महल में नहीं रहते थे, बल्कि अपनी छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। उन्होंने अपनी 90% सैलरी दान कर दी और खुद एक पुरानी वॉल्क्सवैगन बीटल कार चलाते थे। वे रोज़ाना साइकिल से ऑफिस जाते थे और महंगे सूट पहनने की बजाय आम कपड़े पहनते थे।
मुजिका ने हमेशा भौतिकवाद की आलोचना की और लोगों को सरल जीवन जीने, दूसरों की सेवा करने और प्रकृति से जुड़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा था, “मैं गरीब नहीं हूं, मैं सादा हूं। गरीब वो हैं जिन्हें हमेशा और ज्यादा चाहिए।”

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि नेतृत्व का मतलब सत्ता और वैभव नहीं, बल्कि सेवा और त्याग है। होसे मुजिका ने अपने कार्यों और जीवनशैली से यह साबित किया कि एक नेता भी आम आदमी की तरह रह सकता है और फिर भी महान कार्य कर सकता है। उनके निधन से न केवल उरुग्वे, बल्कि पूरी दुनिया ने एक महान नेता और प्रेरणा स्रोत को खो दिया है।