विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए संघर्ष विराम का निर्णय पूर्ण रूप से द्विपक्षीय था, और इसमें किसी भी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता, विशेष रूप से अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने यह बात नीदरलैंड्स स्थित प्रसारक NOS को दिए गए एक साक्षात्कार में कही।

जयशंकर ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए भारत-पाक मध्यस्थता के दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि “यूएस था अमेरिका में”, यानी अमेरिका उस समय केवल अपनी जगह पर था और उसने इस प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर, जो भारत की ओर से 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद शुरू किया गया था, आज भी सक्रिय है – लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भारत लगातार सैन्य कार्रवाई कर रहा है। ऑपरेशन की सक्रियता का उद्देश्य एक रणनीतिक संदेश देना है।
जयशंकर ने बताया कि भारत ने हमले के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित कुल 9 आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की, जिनमें 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया। मारे गए आतंकियों में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के सदस्य शामिल थे।
उन्होंने कहा,
“यह ऑपरेशन यह संदेश देता है कि यदि इस प्रकार के आतंकी हमले होते हैं, जैसा कि 22 अप्रैल को हुआ, तो भारत जवाब देगा – और वह जवाब निर्णायक होगा। हम आतंकियों को निशाना बनाएंगे, चाहे वे जहां भी हों। अगर वे पाकिस्तान में हैं, तो हम वहीं जाकर वार करेंगे।”
जयशंकर ने यह भी दोहराया कि पाकिस्तान आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में उपयोग करता रहा है, और भारत इस खतरे को लेकर वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाता रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को अपने नागरिकों की रक्षा के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने की जिम्मेदारी केवल दोनों देशों की है, और इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं होनी चाहिए।

जयशंकर के इस बयान से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि भारत अब आतंकवाद पर किसी भी तरह की नरमी नहीं बरतेगा और वह अपनी सुरक्षा नीति को पूर्णतः राष्ट्रीय हितों के अनुरूप संचालित करेगा।