भारत ने तुर्की द्वारा पाकिस्तान को समर्थन देने पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और साफ शब्दों में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध पारस्परिक सम्मान, समझ और संवेदनशीलता पर आधारित होते हैं, न कि एकतरफा समर्थन और राजनीतिक एजेंडे पर। नई दिल्ली ने तुर्की से यह भी आग्रह किया है कि वह पाकिस्तान को यह समझाने में मदद करे कि आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में उपयोग करना न केवल क्षेत्र के लिए बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी खतरनाक है।
भारत का तुर्की को स्पष्ट संदेश

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत और तुर्की के बीच के संबंधों को ऐसे वक्त पर मजबूती मिल सकती है जब दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुता और सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करें। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अगर तुर्की चाहता है कि भारत के साथ उसके द्विपक्षीय संबंध मजबूत हों, तो उसे पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थक रवैये के खिलाफ खुलकर आवाज उठानी होगी।
भारत ने तुर्की से अपील की है कि वह पाकिस्तान से आग्रह करे कि वह दशकों से इस्लामाबाद और रावलपिंडी में पनप रहे आतंकी नेटवर्क को खत्म करने के लिए ठोस, विश्वसनीय और सत्यापन योग्य कदम उठाए।
पाकिस्तान का “आतंकी नेटवर्क”
भारत लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाता रहा है कि पाकिस्तान अपने भू-भाग का उपयोग आतंकवाद फैलाने के लिए करता है। वहां पर लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों को खुला समर्थन मिलता रहा है। ये संगठन भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं, खासकर जम्मू-कश्मीर में।
भारत ने यह दोहराया कि अगर तुर्की वास्तव में शांति और स्थिरता में विश्वास रखता है, तो उसे पाकिस्तान पर दबाव बनाना होगा कि वह आतंकवाद को एक हथियार के रूप में उपयोग करना बंद करे।
द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव
भारत-तुर्की संबंध पहले भी कश्मीर मुद्दे पर तुर्की के हस्तक्षेप के चलते प्रभावित हुए हैं। तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र और OIC (इस्लामिक सहयोग संगठन) जैसे मंचों पर पाकिस्तान का समर्थन किया है। भारत इसे अपनी आंतरिक मामलों में दखल मानता है। भारत ने तुर्की को स्पष्ट कर दिया है कि अगर वह भारत के साथ रिश्ते सुधारना चाहता है, तो उसे एक निष्पक्ष और संतुलित रुख अपनाना होगा।
निष्कर्ष

भारत का यह बयान तुर्की और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकियों के संदर्भ में आया है, जो भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ाता है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनयिक संबंधों की मजबूती केवल तब संभव है जब सभी पक्ष आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ एकजुट हों। अगर तुर्की भारत के साथ अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहता है, तो उसे न केवल शब्दों में बल्कि कर्मों में भी निष्पक्षता और जिम्मेदारी दिखानी होगी।