डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के खिलाफ हालिया कदम अमेरिका समेत पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। खासकर उन हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए, जिनका भविष्य अब अधर में लटक गया है। भारत से भी बड़ी संख्या में छात्र हर साल हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं। लेकिन ट्रंप प्रशासन के इस फैसले ने उनके सपनों को झटका दे दिया है।

क्या है मामला?

यह आदेश खासतौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और एमआईटी को प्रभावित करता है, जिन्होंने घोषणा की थी कि वे स्वास्थ्य सुरक्षा कारणों से 2020-21 के शैक्षणिक सत्र में अधिकतर कोर्सेज़ ऑनलाइन ही चलाएंगे।

ट्रंप सरकार ने एक आदेश के तहत हार्वर्ड यूनिवर्सिटी सहित अन्य संस्थानों से कहा है कि यदि वे कोविड-19 के कारण केवल ऑनलाइन क्लासेज़ ही चलाते हैं, तो ऐसे अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यानी छात्रों को या तो किसी ऐसे संस्थान में ट्रांसफर होना होगा जहां फिजिकल क्लासेज़ हो रही हों, या फिर उन्हें अमेरिका छोड़ना होगा।

भारत से गए छात्रों पर असर

हार्वर्ड में लगभग 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्र हैं, जिनमें बड़ी संख्या भारतीय छात्रों की भी है। इनमें से अधिकतर पोस्टग्रेजुएशन या पीएचडी कर रहे हैं। अब उनके सामने कई मुश्किल विकल्प हैं:

  1. वे किसी और यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर लें – जो प्रैक्टिकली संभव नहीं है।
  2. अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत लौट आएं – जिससे उनका साल बर्बाद हो सकता है।
  3. कानूनी लड़ाई का रास्ता अपनाएं – जो समय और पैसा दोनों मांगता है।

क्या ट्रंप सरकार को है ऐसा करने का अधिकार?

तकनीकी रूप से देखा जाए तो इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) के अंतर्गत ट्रंप प्रशासन के पास यह अधिकार है कि वह वीजा नियमों में बदलाव कर सके। लेकिन हार्वर्ड और एमआईटी ने इस आदेश के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की है और कहा है कि यह फैसला छात्रों की शिक्षा के अधिकार पर सीधा हमला है। इस याचिका को अमेरिका की न्याय प्रणाली में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है।

छात्रों की चिंता और अनिश्चित भविष्य

भारतीय छात्र न केवल अपने करियर को लेकर चिंतित हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान को लेकर भी परेशान हैं। हार्वर्ड जैसे संस्थानों में शिक्षा लेना कोई सस्ता सौदा नहीं होता। कई छात्रों ने लोन लेकर या परिवार की जमा पूंजी लगाकर यहां दाखिला लिया है। अब यदि वे अचानक वापस लौटते हैं, तो उन्हें न डिग्री मिलेगी, न पैसा बचेगा।

क्या भारत सरकार कुछ कर सकती है?

विदेश मंत्रालय और भारत के दूतावास अमेरिका में स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। हालांकि अब तक भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन छात्रों को उम्मीद है कि भारत सरकार अमेरिका से इस मुद्दे पर बात करेगी ताकि उन्हें कोई राहत मिल सके।

निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप की यह नीति न केवल अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए एक बड़ा झटका है, बल्कि अमेरिका की वैश्विक शिक्षा प्रतिष्ठा के लिए भी खतरा है। हार्वर्ड और एमआईटी जैसे संस्थानों की साख अंतरराष्ट्रीय छात्रों के कारण भी बनी है। यदि यह कदम वापस नहीं लिया गया, तो अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली में विदेशी छात्रों का विश्वास कमजोर हो सकता है – और भारत जैसे देशों के छात्रों को वैकल्पिक रास्ते ढूंढने पड़ सकते हैं, जैसे यूरोप, कनाडा या ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख करना।

अब देखना होगा कि कोर्ट का फैसला क्या होता है और क्या यह संकट टल पाता है या नहीं। तब तक भारतीय छात्रों को धैर्य और समझदारी से अगला कदम उठाना होगा।

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