यह आदिवासी महिला अपने तीन बच्चों के साथ बेहद गरीबी में जीवन जी रही थी। किसी जरूरत के चलते उसने एक बतख पालने वाले व्यक्ति से ₹25,000 का कर्ज लिया। लेकिन उस व्यक्ति ने महिला को और उसके तीनों बच्चों को अपने पास बंधुआ मजदूर बना लिया। इस दौरान महिला को कई तरह की यातनाएं झेलनी पड़ीं। उसे और उसके बच्चों को जबरन काम कराया जाता रहा। आखिरकार, महिला ने किसी तरह से पैसे का इंतजाम किया, जिसमें ब्याज की रकम भी शामिल थी। उसने वह पूरा पैसा लौटाया और अपने बच्चों को छुड़ाने पहुंची।
बेटे को बताया गया “भागा हुआ”

लेकिन जब महिला ने अपने बेटे के बारे में पूछा, तो बतख पालक ने कहा कि लड़का काम से भाग गया है और उसका कुछ अता-पता नहीं है। महिला को इस पर शक हुआ और उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने आरोपी व्यक्ति से सख्ती से पूछताछ की। तभी एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ।
मौत और गुप्त दफन
पूछताछ में सामने आया कि लड़के की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी और उसे चुपचाप तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में अपने ससुराल वालों के घर के पास दफना दिया गया था। आरोपी ने यह भी बताया कि उसने बताया था कि बच्चे की मौत “पीलिया” (जॉन्डिस) से हुई थी, लेकिन कोई मेडिकल प्रमाण या पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दिखाई गई। यह भी पता चला कि यह सब कुछ महिला को बताए बिना, उसे धोखे में रखकर किया गया।
पुलिस की कार्रवाई
इस गंभीर मामले में पुलिस ने आरोपी बतख पालक और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया है। इस घटना ने राज्य भर में गुस्से की लहर फैला दी है। मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पूरे मामले को लेकर कड़ी निंदा की है और इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
बड़ी सामाजिक चुनौती
यह मामला सिर्फ एक महिला और उसके बेटे की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह देश के उन लाखों लोगों की कहानी है जो गरीबी और अशिक्षा के कारण आज भी बंधुआ मजदूरी जैसे अमानवीय प्रथाओं का शिकार हो रहे हैं। सरकार और प्रशासन को इस दिशा में और सख्त कदम उठाने की जरूरत है, ताकि कोई और मां अपने बेटे को कभी “गिरवी” न रखे और ऐसा क्रूर अन्याय दोबारा न हो।

यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि हमें यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में एक समान और सुरक्षित समाज की ओर बढ़ रहे हैं?