निमिषा प्रिया की वेदना और करुणा की आवश्यकता
मेरा मन – और यकीनन लाखों केरलवासियों का दिल – आज निमिषा प्रिया की पीड़ा से भारी है। यह युवा महिला, जो हमारे ही समाज की बेटी है, आज यमन जैसे संघर्षरत देश में एक गंभीर कानूनी संकट का सामना कर रही है, जहाँ उस पर फाँसी की सजा का खतरा मंडरा रहा है।

यह सिर्फ कानून और व्यवस्था का मामला नहीं है; यह एक गहरी मानवीय त्रासदी है – एक माँ, एक पत्नी, एक बेटी के जीवन का सवाल। उसके माता-पिता, पति और मासूम बच्ची के लिए यह असहनीय दुख और असहायता की घड़ी है। जब कोई अपना किसी ऐसी परिस्थिति में फँस जाए जहाँ न तो वे मदद कर सकते हैं और न ही पास जा सकते हैं, तो यह पीड़ा असहनीय हो जाती है।
निमिषा की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं है; यह उस हजारों केरलवासियों की कहानी का प्रतिबिंब है जो रोज़ी-रोटी की तलाश में विदेश जाते हैं। वह भी यमन इसलिए गई थी ताकि अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन बना सके। उसकी आँखों में सपने थे – एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य के। लेकिन वह सपना एक भयावह दुःस्वप्न में बदल गया, जब एक यमनी नागरिक – तलाल अब्दो महदी – की मृत्यु हो गई, और निमिषा को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
हमें यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि निमिषा ने इस कठिन परिस्थिति में अकेलेपन, सांस्कृतिक भिन्नताओं, और उत्पीड़न का सामना किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, उसने लंबे समय तक मानसिक और शारीरिक शोषण झेला। यदि यह सच है, तो उसकी कार्रवाई – चाहे जैसी भी हो – एक गहरे मानसिक संकट और आत्मरक्षा के प्रयास की प्रतिक्रिया हो सकती है। यह हमें सिखाता है कि केवल ‘कानून’ के नजरिए से ही नहीं, बल्कि ‘करुणा’ और ‘मानवता’ के नजरिए से भी इस मामले को देखना होगा।
आज, जब यमन में फाँसी की सजा की घड़ी करीब आती जा रही है, भारत सरकार, विशेषकर विदेश मंत्रालय और केरल सरकार पर यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे हर संभव कूटनीतिक और कानूनी उपाय अपनाएं। यदि किसी तरह “ब्लड मनी” (दिया) के ज़रिए इस सजा को टाला जा सकता है, तो यह प्रयास तुरंत और गंभीरता से होना चाहिए।
यह केवल निमिषा के जीवन की बात नहीं है। यह उस संवेदनशीलता और मूल्य की बात है जो एक समाज अपने नागरिकों के लिए रखता है – विशेषकर उन लोगों के लिए जो दूसरे देशों में संघर्ष कर रहे हैं।

हमें यह याद रखना चाहिए: न्याय के साथ-साथ करुणा भी मानव सभ्यता का आधार है। निमिषा के मामले में, यह दोनों का संतुलन ढूँढने का समय है – ताकि न केवल एक जान बचाई जा सके, बल्कि हम यह भी दिखा सकें कि भारत और उसके लोग, अपने हर नागरिक के जीवन को मूल्यवान मानते हैं।