भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने हाल ही में महाराष्ट्र के अपने गृह राज्य की एक यात्रा के दौरान लोकतंत्र के तीन स्तंभों — न्यायपालिका, विधानपालिका और कार्यपालिका — की समानता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। यह बात उन्होंने मुंबई में आयोजित एक सम्मान समारोह के दौरान कही, जहां उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और मुंबई पुलिस आयुक्त के अनुपस्थित रहने पर गंभीर आशंका जताई।

मुख्य न्यायाधीश गवई, जो पिछले माह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख बने और देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं, ने अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ समान हैं और एक-दूसरे का सम्मान करना उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि न्यायपालिका के प्रमुख को अपने राज्य की यात्रा पर सम्मानित करने के दौरान कार्यपालिका के प्रमुख अधिकारी उपस्थित नहीं होते हैं, तो यह दर्शाता है कि संबंधित संस्थाओं को अपने दायित्वों और प्रोटोकॉल के प्रति गंभीरता से विचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा, “जब महाराष्ट्र का कोई व्यक्ति देश के मुख्य न्यायाधीश बनता है और पहली बार अपने राज्य में आता है, तो यदि महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक या मुंबई पुलिस कमिश्नर उपस्थित नहीं होते, तो उन्हें इस पर आत्ममंथन करना चाहिए। प्रोटोकॉल कोई नया विषय नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि एक संवैधानिक संस्था दूसरे संस्था को कितना सम्मान देती है।”
मुख्य न्यायाधीश के इस बयान का राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में व्यापक प्रभाव पड़ा है। यह टिप्पणी एक तरह से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संभावित दूरी और सम्मान की कमी की ओर संकेत करती है। पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका की भूमिका और उसके फैसलों को लेकर ‘जुडिशियल ओवररिच’ यानी न्यायपालिका के अधिकारों के विस्तार पर बहस चल रही है। इस बीच, मुख्य न्यायाधीश गवई की यह टिप्पणी इस बहस को एक नया आयाम दे रही है कि लोकतंत्र के सभी स्तंभों को एक-दूसरे का सम्मान करते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।
महाराष्ट्र में न्यायपालिका के शीर्ष पद पर आसीन व्यक्ति के रूप में गवई की यह अपील संवैधानिक संस्थाओं के बीच सौहार्द्रपूर्ण संबंधों को स्थापित करने का प्रयास है। इसके साथ ही यह संदेश भी है कि लोकतंत्र तभी सशक्त और प्रभावी हो सकता है जब न्यायपालिका, विधानपालिका और कार्यपालिका एक-दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक काम करें और किसी भी प्रकार की असम्मानजनक गतिविधि को अंजाम न दिया जाए।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने यह बात उस समय कही जब वे बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की समाधि ‘चैत्यभूमि’ भी गए, जो न्याय, समानता और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में माना जाता है। उनकी इस यात्रा का भी खास महत्व रहा क्योंकि वे स्वयं दलित समुदाय से आते हैं और न्यायपालिका में अपनी इस उपलब्धि से न केवल कानूनी क्षेत्र में बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी प्रेरणा स्रोत बने हैं।
संक्षेप में कहा जाए तो मुख्य न्यायाधीश गवई ने अपने बयान के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया है कि लोकतंत्र के तीन स्तंभ समानता, पारस्परिक सम्मान और सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकते। उनके अनुसार, संवैधानिक संस्थाएं अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हों और हर स्तर पर सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करें ताकि भारत में लोकतंत्र और संविधान की गरिमा बनी रहे।

इस प्रकार, न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा इस तरह की बात कहना इस बात का संकेत है कि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच बेहतर संवाद और समझ की आवश्यकता है, ताकि देश के लोकतंत्र को मजबूत और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।