🧭 संसद के साधारण क्रम के बाहर: उपराष्ट्रपति धानखड़ के अचानक इस्तीफे की पूरी साजिश
रविवार देर रात अचानक इस्तीफा देकर उपराष्ट्रपति पद से हटने वाले जगदीप धनखड़ के पीछे की पूरी कहानी अब एक बड़े राजनीतिक–न्यायिक ड्रामे जैसी दिख रही है। एनडीटीवी के सूत्रों के अनुसार—एक सामान्य फोन कॉल ने सब कुछ एक ऐसे मोड़ पर ला दिया, जहाँ उपराष्ट्रपति के पास “ऐसा इस्तीफा देना”-से इतर कोई चारा नहीं बचा।
🔍 मोहिम की शुरुआत: न्यायाधीश पर CASH का खुलासा

- दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर 14–15 मार्च 2025 की रात आग लगी। जब अग्निशमन दल पहुँचा, तो वे बर्न हुए या आधे बर्न ₹500 नोटों के ढ़ेर से सहम गए
- इस घटना ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की बड़े स्तर पर बहस शुरू करा दी।
🧩 संवैधानिक उपकरणों का प्रभाव
- अग्नि–निरीक्षण के तुरंत बाद सीजेआई संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय इन–हाउस जांच समिति का गठन किया, जिसने पाया कि इस पूरे घटनाक्रम में जज की संलिप्तता “गंभीर” थी
- इस समिति की रिपोर्ट ने संसद में गूँज पैदा कर दी; जुलाई 2025 के मानसून सत्र के दौरान संसद में यशवंत वर्मा को हटाने हेतु एक अधिवेशन (इम्पीचमेंट) नोटिस लाया गया
🏛️ धानखड़ का हस्तक्षेप: राष्ट्रपति की कुर्सी से महत्वपूर्ण दिशा निर्देश
- राज्यसभा के अध्यक्ष (और उपराष्ट्रपति) के रूप में, धनखड़ को 50 से अधिक सांसदों द्वारा प्रस्तुत इम्पीचमेंट नोटिस मिला, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया
- इसके बाद उन्होंने सचिव–सामान्य को आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया, जो इस प्रकरण को औपचारिक रूप से आगे बढ़ाता था।
⚠️ केंद्र सरकार की नाराज़गी
- सूत्रों का कहना है कि इस कदम का केंद्र सरकार में “बड़ा प्रभाव” पड़ा, क्योंकि इससे उनका ऑफ़िशियल रणनीति बाधित हुई: सरकार इस मामले को अपने नियन्त्रण में रखना चाहती थी
- सरकार संभवतः जज निर्मूलता और भ्रष्टाचार पर एक शक्तिशाली आमने-सामने वाला हमला चाहती थी, लेकिन धनखड़ द्वारा नोटिस को मान्यता देने से यह ‘सरकारी नेतृत्व’ का मंच सरकार ही नहीं ले पाई।

- अगर इस्तीफ़ा न होता, तो शायद उपराष्ट्रपति को सरकार समर्थित अविश्वास प्रस्ताव (नो–कॉन्फिडेंस मोशन) का सामना करना पड़ता।
- इस्तीफ़ा देकर उन्होंने संभवत: उस “अपमानजनक प्रक्रिया” से खुद को दूर कर लिया, और “स्वच्छता बहन” छवि भी बनाए रखी
🔐 फोन कॉल और इस्तीफे की गुप्त ताज़गी
- एनडीटीवी के अनुसार, संध्या में एक उच्च दर्जे का फोन कॉल आया, जो उपराष्ट्रपति के और केंद्र के बीच दीवारें खड़ी करने वाला साबित हुआ।
- इसके पूरे घटनाक्रम ने उन्हें “आगे कोई रास्ता नहीं” दिखा कर आख़िरकार इस्तीफ़ा देना मज़बूर किया—आख़िरकार इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से बताया गया, लेकिन इसका वास्तविक कारण शायद राजनीतिक दबाव रहा।