पिछले कुछ दिनों से देश में हफ्ते में काम के घंटों को लेकर एक बड़ी बहस चल रही है। इस बहस का केंद्र बिंदु यह था कि क्या लंबे कार्य समय को बढ़ाना स्वस्थ है, या फिर यह मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। जहां एक ओर L&T के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने आम लोगों के लिए हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह दी थी, वहीं इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 70 घंटे काम करने का सुझाव दिया। इन दोनों के विचारों ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी, और लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। लेकिन इन विचारों के बीच आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने एक चेतावनी जारी की है, जो यह स्पष्ट करता है कि लंबे समय तक काम करना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति हफ्ते में 60 घंटे से ज्यादा काम करता है, तो इसका मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। खासकर, लंबे समय तक डेस्क पर बैठकर काम करने वाले लोग अक्सर मानसिक तनाव का सामना करते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि जो लोग दिन में 12 घंटे या उससे ज्यादा काम करते हैं, उन्हें शारीरिक और मानसिक समस्याएं जैसे कि थकावट, तनाव, और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है। यह चेतावनी खासतौर पर उन उद्योगपतियों और कार्यक्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है, जो लंबे समय तक काम करने को प्रोत्साहित करते हैं।

यह चेतावनी ऐसे समय में आई है जब देश में काम के घंटों को लेकर एक गंभीर बहस चल रही है। पिछले दिनों, जब कुछ बड़े उद्योगपतियों ने लंबी कार्यकाल की सिफारिश की, तो इस पर आम लोगों की विभिन्न प्रतिक्रियाएं आईं। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं, जिसमें लोगों ने अपनी थकान और मानसिक तनाव के बारे में बात की। इसके विपरीत, आर्थिक सर्वेक्षण ने यह स्पष्ट किया कि मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर गहरा हो सकता है, और यह स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।

आर्थिक सर्वेक्षण में एक और महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक स्टडी पर आधारित था। इस स्टडी के अनुसार, हर साल दुनिया भर में डिप्रेशन और एंग्जायटी की वजह से लगभग 12 अरब वर्किंग डेज का नुकसान होता है, जिससे करीब 1 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है। यह आंकड़ा इस बात का प्रमाण है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने से न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि पूरे देश की आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इस सर्वेक्षण के बाद यह सवाल उठता है कि क्या हमें कार्यस्थलों पर काम के घंटों को लेकर फिर से विचार करने की आवश्यकता है? क्या हम मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझते हुए कार्य स्थलों पर बदलाव करेंगे? इन सवालों का जवाब न केवल कर्मचारी की भलाई के लिए जरूरी है, बल्कि इससे देश की समग्र उत्पादकता भी प्रभावित होगी।

आर्थिक सर्वेक्षण की यह चेतावनी हमें यह याद दिलाती है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और लंबे कार्य घंटे केवल काम की मात्रा में वृद्धि नहीं करते, बल्कि यह कर्मचारियों की समग्र भलाई को प्रभावित करते हैं। हमें यह समझना होगा कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का सही संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, ताकि हम न केवल अपनी व्यक्तिगत उन्नति कर सकें, बल्कि समाज और राष्ट्र की समृद्धि में भी योगदान दे सकें।

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