
इजरायल को अक्सर एक टेक्नोलॉजिकल और डिफेंस के लिहाज़ से दुनिया के सबसे ताक़तवर देशों में गिना जाता है। लेकिन हाल ही में यरूशलम के पास फैली भीषण जंगल की आग ने यह साफ कर दिया कि चाहे देश कितना भी एडवांस क्यों न हो, कुदरत के कहर से लड़ने के लिए सिर्फ तकनीक ही नहीं, सामूहिक प्रयास और व्यापक तैयारी की ज़रूरत होती है।
यरूशलम के जंगलों में एक छोटी सी चिंगारी ने जो तांडव मचाया, उसने हजारों लोगों को हिला कर रख दिया। इस विनाशकारी आग ने 5000 एकड़ से अधिक का क्षेत्र खाक कर दिया। आग इतनी तेज़ी से फैली कि लोगों को हाईवे पर अपनी गाड़ियां छोड़कर जान बचाने के लिए भागना पड़ा। हालात इतने गंभीर हो गए थे कि यरूशलम और तेल अवीव जैसे दो बड़े शहरों का आपसी संपर्क पूरी तरह टूट गया।
नेतन्याहू सरकार और इजरायली फायर ब्रिगेड ने इस घटना से एक बड़ी सीख ली है — कि देश को और भी ज्यादा एडवांस होने की जरूरत है, न केवल टेक्नोलॉजी में बल्कि आपदा प्रबंधन की रणनीति में भी। यह केवल इजरायल के लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए चेतावनी है जो सोचते हैं कि आधुनिक तकनीक के दम पर वे प्राकृतिक आपदाओं से निपट सकते हैं।
इजरायल ने विदेशी मदद की भी अपील की और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अहमियत को भी स्वीकार किया। यह एक संकेत है कि अकेले लड़ना अब विकल्प नहीं रह गया है। जलवायु परिवर्तन, सूखा, तेज़ हवाएं और गर्मी की वजह से जंगल की आग की घटनाएं अब केवल एक देश की समस्या नहीं रहीं, यह वैश्विक आपदा बन चुकी है।
रिहायशी इलाकों तक पहुंचती आग ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि भविष्य में ऐसी आपदाओं से लोगों की जान-माल की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी। क्या बड़े शहरों के पास पर्याप्त इमरजेंसी रेस्पॉन्स है? क्या फायरफाइटिंग तकनीकें और प्रशिक्षण आज की जरूरतों को पूरा कर पा रही हैं?
नेतन्याहू सरकार अब नई रणनीति पर काम कर रही है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित फायर मॉनिटरिंग सिस्टम, ड्रोन-आधारित फायर मैनेजमेंट और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से रेस्क्यू मिशन शामिल हैं। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि अब इजरायल ने यह मान लिया है कि कुदरत की मार को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है।
इजरायल की यह घटना बाकी दुनिया के लिए भी एक चेतावनी है — समय रहते चेत गए, तो बचाव मुमकिन है। वरना एक चिंगारी भी शहरों को राख में बदल सकती है।
