कश्मीरी पंडितों के पलायन को 35 साल पूरे हो गए हैं और इस मौके पर बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने एक इमोशनल पोस्ट साझा किया। 90 के दशक में कश्मीर घाटी में हिंदुओं के पलायन की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव और असुरक्षा के कारण लाखों कश्मीरी हिंदू परिवारों को अपनी जड़ें छोड़कर पलायन करना पड़ा था। इस दर्दनाक घटना में अनुपम खेर का परिवार भी शामिल था और उन्होंने इस दुख को अपने जीवन का हिस्सा माना है।
19 जनवरी, 1990 को कश्मीरी हिंदुओं का पलायन हुआ था, जो आज भी एक काले दिन के रूप में याद किया जाता है। यह वह दिन था, जब लाखों कश्मीरी पंडितों को अपनी जमीन, घर और संपत्ति छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। घर छोड़ने की पीड़ा और अपनों से बिछड़ने का दर्द उन परिवारों में आज भी जिंदा है, जो इस त्रासदी के शिकार हुए थे। अनुपम खेर ने इस कष्टदायक दिन को याद करते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने 35 साल बाद भी इस घटना के दुख और पीड़ा को साझा किया।
अनुपम खेर ने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, “19 जनवरी, 1990 कश्मीरी हिंदुओं का पलायन दिवस। 35 साल हो गए हैं, जब 5,00,000 से ज्यादा हिंदुओं को उनके घरों से बेरहमी से निकाल दिया गया था। वे घर अभी भी वहीं हैं, लेकिन उन्हें भुला दिया गया है। वे खंडहर हैं।” इसके साथ ही उन्होंने एक कविता का भी हवाला दिया, जो कवि और फिल्म लेखक सुनयना काचरू की थी। सुनयना काचरू भी कश्मीरी पंडित हैं और इस कविता के माध्यम से उन्होंने उन घरों और उनके बचपन की यादों को जीवित किया, जो अब सिर्फ खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।
यह कविता सुनते हुए अनुपम खेर की आंखों में आंसू आ गए थे, क्योंकि यह कविता उन कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और दर्द को बयान करती है, जो आज भी इस त्रासदी को महसूस करते हैं। अनुपम खेर के लिए यह एक व्यक्तिगत अनुभव है, क्योंकि उन्होंने खुद इस पलायन को झेला है और वह इस दर्द को हमेशा अपने दिल में महसूस करते हैं।
अनुपम खेर ने इस दिन को याद करते हुए उन सभी कश्मीरी पंडितों को श्रद्धांजलि अर्पित की है, जिन्होंने इस त्रासदी को सहा। उनकी कविताओं और विचारों में एक साफ संदेश है कि कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और दर्द को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। यह घटना न केवल कश्मीरी पंडितों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक गहरी चोट है।
आज भी कश्मीरी पंडितों का जीवन उस पलायन के बाद से पूरी तरह से बदल गया है। कई परिवारों ने अपनी पहचान, संस्कृति और सभ्यता को छोड़ दिया और अब भी अपनी घर वापसी का सपना देख रहे हैं। अनुपम खेर का यह इमोशनल पोस्ट और कविता उन सभी के लिए एक सशक्त संदेश है, जो कभी कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को समझने की कोशिश नहीं करते। यह घटना न केवल कश्मीरी पंडितों, बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा।