इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाजा में जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक संभावित समझौते के प्रति अपनी सहमति जताई है, यदि हमास कुछ विशेष शर्तें पूरी करता है। यह बयान इज़राइल की नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, क्योंकि इससे पहले इज़राइल ने बार-बार कहा था कि गाजा में लड़ाई तब तक खत्म नहीं होगी जब तक हमास का सैन्य और प्रशासनिक रूप से पूर्ण विनाश नहीं हो जाता।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा है कि दोहा में स्थित इज़राइली बंधक वार्ता दल फिलिस्तीनी समूह के साथ लड़ाई को अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए हर संभव रास्ता तलाश रहा है। इस वार्ता में अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकोफ़ के प्रस्ताव को भी गंभीरता से देखा जा रहा है, जिसमें सीमित बंधक विनिमय और अल्पकालिक युद्धविराम का सुझाव दिया गया है। इसके अलावा एक व्यापक समझौते पर भी विचार हो रहा है, जिसमें सभी बंधकों की रिहाई, हमास के आतंकवादियों का निर्वासन, और गाजा पट्टी का पूरी तरह से निरस्त्रीकरण शामिल है।

पीएमओ ने बयान जारी कर कहा, “अभी इस समय भी, दोहा में वार्ता दल हर संभव रास्ता तलाश रहा है ताकि समझौता हो सके — चाहे वह विटकोफ़ के प्रस्ताव के अनुसार हो या युद्ध समाप्ति के हिस्से के रूप में, जिसमें सभी बंधकों की रिहाई, हमास आतंकवादियों का निर्वासन और गाजा पट्टी का निरस्त्रीकरण शामिल हो।”
यह संकेत इज़राइल की उस कठोर नीति में बदलाव को दर्शाता है, जिसने लगातार कहा है कि बिना हमास को सैन्य और प्रशासनिक रूप से समाप्त किए बिना संघर्ष खत्म नहीं हो सकता। मार्च के शुरुआत से ही इज़राइल ने गाजा में चिकित्सा, भोजन और ईंधन की आपूर्ति को पूरी तरह से रोक रखा है, जिससे हमास पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे इज़राइली बंधकों को रिहा करें। इसके अलावा इज़राइल ने गाजा पट्टी पर पूरी तरह नियंत्रण पाने और सहायता वितरण के प्रबंधन की योजना को भी मंजूरी दी है।
यह नया रुख युद्ध को समाप्त करने की संभावनाओं को लेकर आशा जगा रहा है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि शर्तें बेहद सख्त और हमास के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। हमास को न केवल सभी बंधकों को छोड़ना होगा, बल्कि अपनी सशस्त्र इकाइयों को भी समर्पण करना होगा और गाजा से अपनी गतिविधियों को समाप्त करना होगा। इस समझौते में हमास के निर्वासन का भी प्रस्ताव है, जो क्षेत्रीय राजनीति में गहरा प्रभाव डाल सकता है।
इस बीच, दोहा में चल रही वार्ताओं की गहनता और कोशिशों को देखकर यह स्पष्ट है कि युद्ध के प्रभावों और मानवीय संकट को कम करने के लिए दोनों पक्षों के बीच संवाद की आवश्यकता महसूस की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस दिशा में सक्रिय है, जो मध्यस्थता करके शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।

कुल मिलाकर, इज़राइल का यह रुख युद्ध के तत्काल अंत की ओर एक बड़ा कदम माना जा सकता है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि शांति के लिए उठाए जाने वाले कदम कठिन और जटिल होंगे, क्योंकि हमास की भूमिका और उसकी शर्तें प्रमुख बाधाएं बनी हुई हैं। संघर्ष की इस अवधि में मानवीय संकट गहरा होता जा रहा है, इसलिए दोनों पक्षों के बीच किसी सार्थक और टिकाऊ समझौते की जरूरत बेहद जरूरी है।