जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख राजनीतिक नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनकी पूर्ववर्ती महबूबा मुफ्ती के बीच शुक्रवार को सोशल मीडिया पर एक तीखा वाद-विवाद छिड़ गया। विवाद का केंद्र बना ‘तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट’, जो वुलर झील को पुनर्जीवित करने और झेलम नदी के जरिए नौवहन को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता है।
तुलबुल प्रोजेक्ट का इतिहास
तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट की शुरुआत 1987 में की गई थी। यह परियोजना बांदीपोरा ज़िले की वुलर झील से संबंधित है, जिसे झेलम नदी पोषित करती है। इसका उद्देश्य था कि झेलम नदी में जल स्तर नियंत्रित करके नौवहन और सिंचाई को बेहतर बनाया जाए। हालांकि, 2007 में इस प्रोजेक्ट को पाकिस्तान की आपत्ति के बाद रोक दिया गया। पाकिस्तान ने इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन बताया था।
संधि निलंबन के बाद फिर से शुरू करने की मांग
हाल ही में 23 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। इसके ठीक एक दिन बाद उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि अब जब यह संधि स्थगित कर दी गई है, तो सरकार को वुलर झील पर अधूरी पड़ी इस परियोजना को फिर से शुरू करना चाहिए।

महबूबा मुफ्ती की आपत्ति और उमर की प्रतिक्रिया
महबूबा मुफ्ती ने इस मांग को ‘उकसावे वाली राजनीति’ करार दिया। उन्होंने कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का पालन किया जा रहा है, ऐसे समय में इस तरह की मांग करना दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। महबूबा ने यह भी कहा कि ऐसे प्रोजेक्ट के नाम पर सरकार लोगों की भावनाओं से खेल रही है।
इसके जवाब में उमर अब्दुल्ला ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि महबूबा मुफ्ती “कुछ लोगों को खुश करने के लिए” पाकिस्तान की भाषा बोल रही हैं और सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि जब भारत ने औपचारिक रूप से संधि को निलंबित कर दिया है, तो अब देशहित में अधूरी पड़ी परियोजनाओं को पूरा करना स्वाभाविक कदम है।
राजनीतिक और रणनीतिक मायने
यह विवाद सिर्फ दो नेताओं के बीच का राजनीतिक मतभेद नहीं है, बल्कि भारत-पाक संबंधों की जटिलता, जल संसाधनों पर नियंत्रण और जम्मू-कश्मीर की आंतरिक राजनीति की परतों को उजागर करता है। वुलर झील रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम मानी जाती है और इस परियोजना के फिर से शुरू होने से क्षेत्र में पानी की उपलब्धता, कृषि और स्थानीय व्यापार को भी लाभ मिल सकता है।

इस विवाद के बीच यह सवाल भी उठता है कि क्या केंद्र सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय लेगी या यह सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाज़ी बनकर रह जाएगा।