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"Owaisi vs Kiren Rijiju: The Heated Debate on Minority Rights and Migration in India"

नवीनतम राजनीतिक बहस में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामले के मंत्री किरेन रिजिजु और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमान (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के बीच अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर तीखी बहस हुई है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब किरेन रिजिजु ने भारतीय मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि देश में अल्पसंख्यक समुदायों को बहुसंख्यकों की तुलना में अधिक सुविधाएं और संरक्षण मिलता है।

रिजिजु ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए यह भी दावा किया कि भारतीय मुस्लिम पड़ोसी देश पाकिस्तान नहीं जाते क्योंकि उन्हें भारत में ही पर्याप्त सुरक्षा और लाभ मिलते हैं। हालांकि उन्होंने किसी खास नाम का जिक्र नहीं किया, लेकिन यह तंज साफ था कि भारतीय मुसलमान भारत छोड़कर कहीं नहीं जा रहे क्योंकि भाजपा सरकार उन्हें अतिरिक्त फायदे प्रदान करती है।

अपने ट्वीट में रिजिजु ने लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की कल्याणकारी योजनाएं सभी के लिए हैं। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की योजनाएं विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को अतिरिक्त लाभ देती हैं।” इस बयान का जवाब देते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमान भारत में इसलिए रहते हैं क्योंकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने का साहस रखते हैं, न कि इसलिए कि उन्हें कोई ‘सुविधाएं’ मिली हों। “हम भागने वालों में से नहीं हैं… हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं। भारत की तुलना असफल राज्यों से न करें,” उन्होंने कहा।

ओवैसी ने अपनी बात को और विस्तार देते हुए कहा कि अगर मंत्री साहब की मानें तो मुस्लिम समाज के लोग इसलिए देश नहीं छोड़ते क्योंकि वे खुश हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारतीय मुसलमान भागने की आदत में कभी नहीं रहे। उन्होंने कहा, “हम न तो ब्रिटिश राज से भागे, न विभाजन के दौरान, और न ही कभी। हमारा इतिहास यह प्रमाण है कि हम अपने उत्पीड़कों के साथ मिलकर काम नहीं करते और न ही उनसे डरते हैं। हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना आता है।”

ओवैसी के इस बयान में इतिहास की गूंज सुनाई देती है, जहां भारतीय मुसलमानों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विभाजन के दौरान भी अपने अधिकारों और अस्तित्व के लिए संघर्ष किया और आज भी वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं। यह बहस न केवल राजनीतिक मुद्दे को उजागर करती है बल्कि यह भी दर्शाती है कि अल्पसंख्यक समुदाय अपने अस्तित्व, सुरक्षा और सम्मान के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहा है।

किरन रिजिजु का दावा है कि भाजपा सरकार की नीतियां सभी समुदायों के लिए समान रूप से लाभकारी हैं, लेकिन ओवैसी की प्रतिक्रिया इस बात की ओर इशारा करती है कि सरकार की इन बातों और नीतियों के बावजूद अल्पसंख्यकों की चिंताएं खत्म नहीं हुई हैं। यह बहस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पहले ट्विटर) पर भी जोर-शोर से चली, जहां दोनों नेताओं के समर्थकों ने इस मुद्दे पर बहस की।

यह राजनीतिक संवाद इस समय की अहम परिस्थितियों को दर्शाता है, जब देश में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा, उनके अधिकार और उन्हें मिलने वाले लाभों को लेकर गहरी असहमति और मतभेद नजर आ रहे हैं। इस बहस ने न केवल दोनों नेताओं की विचारधाराओं को सामने रखा, बल्कि आम जनता में भी अल्पसंख्यकों की स्थिति पर बहस को हवा दी।

अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके उत्थान के लिए निरंतर संवाद और संघर्ष की आवश्यकता है। चाहे सरकार की ओर से जो भी योजनाएं हों, उनका सही मायनों में प्रभावी क्रियान्वयन ही असली परीक्षा है। ओवैसी और रिजिजु के बीच हुई यह बहस उसी परीक्षा की एक झलक है, जो आने वाले दिनों में और भी तीव्र हो सकती है।

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