ठाणे कोर्ट ने बेटे के अपहरण के आरोप से आरोपी को किया बरी, मुख्य गवाह बने अनसुनी

ठाणे की एक अदालत ने एक 36 वर्षीय व्यक्ति को अपने ससुराल की बहन के छोटे बेटे के अपहरण के आरोप से बरी कर दिया है। यह मामला 2023 का है, जिसमें अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह मामले में अपना समर्थन वापस ले चुके हैं और ‘होस्टाइल’ हो गए हैं।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वी. जी. मोहिटे ने 18 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ अपहरण की बात साबित करने के लिए कोई ठोस और मान्य सबूत पेश नहीं किए हैं। इस वजह से अदालत ने आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया।

अदालत ने कहा कि आरोपी को तत्काल रिहा किया जाए, बशर्ते कि उसके खिलाफ कोई अन्य कानूनी कार्रवाई लंबित न हो। आरोपी तब से न्यायिक हिरासत में था, जो 28 अक्टूबर 2023 से चली आ रही थी।

अभियोजन का आरोप था कि 25 अक्टूबर 2023 को आरोपी अपने ससुराल की बहन के घर गया, जो महाराष्ट्र के ठाणे शहर के कलवा इलाके में है। वहां उसने अपने भतीजे, जो कि मात्र डेढ़ साल का था, को मिठाई खिलाने के बहाने अपने साथ ले गया था। आरोप था कि आरोपी ने बच्चे का अपहरण फिरौती के लिए किया था।

हालांकि, मामले में अदालत को जो मुख्य गवाह समझे जा रहे थे, उन्होंने अपने बयान बदल दिए और आरोपी के खिलाफ सख्त आरोप लगाने से इनकार कर दिया। इस वजह से अभियोजन पक्ष की कहानी कमजोर पड़ गई और अदालत ने कहा कि बिना मजबूत सबूतों के आरोपी को दोषी ठहराना सही नहीं होगा।

यह मामला इलाके में चर्चा का विषय बना था क्योंकि छोटे बच्चे के अपहरण की खबर ने लोगों को काफी चिंतित कर दिया था। परंतु, जांच में आरोपी के खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने से मामला कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने साफ कर दिया कि कानून को बिना सबूत के किसी को सजा नहीं दे सकता।

इस घटना ने परिवार में भी तनाव बढ़ा दिया था, लेकिन कोर्ट के निर्णय के बाद आरोपी को रिहा कर दिया गया। अब वह अपनी आज़ादी वापस पा चुका है और अदालत के आदेश के अनुसार आगे की किसी भी कानूनी कार्रवाई का सामना करेगा।

यह मामला यह भी बताता है कि आपराधिक मामलों में गवाहों का बयान कितना अहम होता है। जब गवाह बदल जाते हैं या अपने बयान से पलट जाते हैं, तो पूरी जांच प्रभावित होती है और सच का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

अदालत का यह निर्णय एक उदाहरण है कि न्याय प्रणाली को साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर काम करना चाहिए, न कि अफवाहों या आरोपों के आधार पर। इस केस में आरोपी को निर्दोष माना गया क्योंकि उस पर लगाये गए आरोप साबित नहीं हो सके।

इस घटना से यह भी साफ होता है कि अपहरण जैसे गंभीर मामलों में भी कानूनी प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष और सबूतों पर आधारित होती है, और कोई भी व्यक्ति बिना उचित जांच और प्रमाण के जेल में नहीं रह सकता।

इसलिए, ठाणे कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह सुनिश्चित किया है कि किसी भी अपराध के मामले में कानून का शासन सर्वोपरि है और न्याय के बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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