24 घंटे में न्याय की तीन बड़ी जीत: जयपुर-हैदराबाद-मुंबई के घावों पर वक्त का मरहम

भारत के इतिहास में दर्ज कई दर्दनाक आतंकी हमलों ने न सिर्फ देश की आत्मा को झकझोरा, बल्कि सालों तक पीड़ित परिवारों के दिलों में एक अधूरी उम्मीद को ज़िंदा रखा—इंसाफ की उम्मीद। लेकिन 8 और 9 अप्रैल 2025 का यह 24 घंटों का दौर, उन सभी उम्मीदों को एक साकार रूप देने वाला बन गया। एक ओर जयपुर के सीरियल ब्लास्ट मामले में चार दोषियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई, दूसरी ओर हैदराबाद डबल ब्लास्ट केस में पांचों दोषियों की फांसी की सज़ा को हाई कोर्ट ने बरकरार रखा, और तीसरी ओर, मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित करने की कार्रवाई शुरू हो गई है।

जयपुर ब्लास्ट: सज़ा का ऐलान 17 साल बाद

13 मई 2008 की वह शाम, जब गुलाबी नगरी जयपुर की सड़कें खून से लाल हो गई थीं। एक के बाद एक सात बम धमाकों ने पूरे शहर को दहला दिया था। इन धमाकों में 71 लोगों की मौत हुई और 185 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। 17 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, 8 अप्रैल को स्पेशल कोर्ट के जज रमेश कुमार जोशी ने चार दोषियों—सैफुर्रहमान, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर आजमी और शाहबाज अहमद—को उम्रकैद की सज़ा सुनाई। यह फैसला उन सभी पीड़ितों के लिए न्याय की आशा का प्रतीक बन गया है, जिन्होंने वर्षों तक इस दिन की प्रतीक्षा की।

हैदराबाद डबल ब्लास्ट: मौत की सज़ा बरकरार

2013 में हैदराबाद के दिलसुखनगर इलाके में हुए डबल ब्लास्ट में 18 निर्दोष लोगों की जान गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस मामले में दोषी पाए गए इंडियन मुजाहिदीन के पांच आतंकियों को निचली अदालत ने फांसी की सजा दी थी, जिसे 8 अप्रैल को तेलंगाना हाई कोर्ट ने बरकरार रखा। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यह “रेयरेस्ट ऑफ द रेयर” अपराध था, जिसमें निर्दोष आम जनता को निशाना बनाया गया।

तहव्वुर राणा: भारत लाया जा रहा है मुंबई हमले का मास्टरमाइंड

26/11 का जख्म आज भी हर भारतीय के दिल में ताज़ा है। इस हमले के मास्टरमाइंडों में शामिल तहव्वुर राणा, जो अमेरिकी जेल में बंद था, अब भारत लाया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, 9 अप्रैल को अमेरिका से एक फ्लाइट भारत रवाना हुई जिसमें तहव्वुर राणा मौजूद है। उसके प्रत्यर्पण से इस केस की नई परतें खुलने की उम्मीद है और 166 लोगों की मौत का जिम्मेदार वह चेहरा अब भारतीय न्याय व्यवस्था के सामने होगा।

एक साथ तीन केस, एक साथ न्याय

इन तीन मामलों में एक साथ 24 घंटे के भीतर हुए बड़े फैसले इस बात का प्रमाण हैं कि चाहे समय लगे, लेकिन न्याय अवश्य मिलता है। आतंक के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सुरक्षा बलों की नहीं, बल्कि एक मज़बूत न्यायिक प्रक्रिया की भी है।

इन फैसलों से उन सभी लोगों को एक संदेश गया है जो आतंक के जरिए भारत की एकता, शांति और मजबूती को चुनौती देना चाहते हैं—कि चाहे वे कितने भी शातिर क्यों न हों, भारत की न्याय प्रणाली उन्हें उनके अंजाम तक जरूर पहुंचाएगी।

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