महाकुंभ मेला, जो हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित होता है, भारत के सबसे बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है। इस मेला में लाखों श्रद्धालु आते हैं, जो यहां आस्था, भक्ति और शांति की प्राप्ति के लिए पवित्र स्नान करते हैं। कुंभ मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक प्रतीक भी है। इस भव्य आयोजन में हर घाट पर एक नई कहानी होती है, हर चेहरे पर आस्था की चमक होती है और हर कदम पर भक्ति की लहरें गूंजती हैं। लेकिन क्या इस महान आयोजन को सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले शॉर्ट वीडियो, जिन्हें रील्स कहते हैं, में सही तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है?

धीरेंद्र शास्त्री के साथ कुंभ-10 एपिसोड में इस मुद्दे पर चर्चा की गई है। उन्होंने बताया कि कैसे सोशल मीडिया के इस दौर में, जहां हर कोई ट्रेंड्स और वायरल होने की दौड़ में है, सही तरीके से रील्स बनाना जरूरी है। हालांकि, यह सत्य है कि रील्स बनाना और वायरल होना बुरा नहीं है, बल्कि यह एक अच्छे और सकारात्मक संदेश के फैलने का एक जरिया हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन रील्स में केवल चमक-दमक और लाइक्स की होड़ को दिखाया जाता है, या फिर क्या हम कुंभ की असली भावना और इसकी गहरी आस्था को भी समर्पित कर रहे हैं?

धीरेंद्र शास्त्री का कहना है कि टेक्नोलॉजी का सही उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है। कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन की वास्तविकता को सही तरीके से प्रस्तुत करने के लिए रील्स का माध्यम उपयोगी हो सकता है। यदि रील्स में सिर्फ बाहरी शो-ऑफ दिखाया जाए, तो इससे कुंभ की असली आत्मा को नुकसान हो सकता है। इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रील्स में हम जो दिखा रहे हैं, वह कुंभ की वास्तविकता और उसकी आस्थाओं के प्रति सम्मान प्रकट करें।

रियलिटी को रील में लाना सिर्फ एक चुनौती नहीं है, बल्कि यह एक जिम्मेदारी भी है। रील्स में हमें कुंभ की धार्मिकता, भक्ति, और उस अद्वितीय वातावरण को व्यक्त करने का प्रयास करना चाहिए, जो वहां के हर एक पल में मौजूद होता है। चाहे वह नदियों में स्नान करने वाले श्रद्धालु हों, साधुओं की साधना हो या फिर हर स्थान पर फैली हुई श्रद्धा और शांति हो, इन सभी को सही रूप में प्रस्तुत करना जरूरी है।

आखिरकार, यह हम पर निर्भर करता है कि हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करते हैं। रील्स बनाने से लेकर उसे वायरल करने तक, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम सिर्फ ट्रेंड में न रहें, बल्कि समाज को एक सही दिशा दिखाने का प्रयास करें। कुंभ की तस्वीर केवल उसके भव्यता तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसकी गहरी आस्था और अध्यात्मिकता को भी उजागर करना चाहिए, जिससे लोगों को असली कुंभ की समझ मिल सके।

धीरेंद्र शास्त्री के साथ इस एपिसोड में यही संदेश दिया गया है कि रील्स सिर्फ एक ट्रेंड नहीं हैं, बल्कि वे हमारे समाज की विचारधारा और संस्कृति को भी व्यक्त करने का एक प्रभावशाली तरीका हो सकती हैं। इसलिए, रील्स में हमें रीयल और असली दिखाना जरूरी है, ताकि हम कुंभ के असली रूप को हर किसी तक पहुंचा सकें।

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