डॉक्यूमेंट्स नहीं, वक्फ से छिनेंगे 256 राष्ट्रीय स्मारक: नए कानून से खत्म होगा दावा

देश में वक्फ बोर्ड और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के बीच वर्षों से चला आ रहा संपत्ति विवाद अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2024 के लागू होने के बाद, अब वक्फ बोर्ड के पास उन सभी प्रॉपर्टीज़ के लिए दस्तावेज़ पेश करने की अनिवार्यता होगी, जिन पर उसका दावा है। और यदि दस्तावेज़ नहीं मिले, तो उनके दावे स्वत: निरस्त माने जाएंगे।

यह संशोधन केवल एक कानून परिवर्तन नहीं, बल्कि 256 राष्ट्रीय स्मारकों की किस्मत का फैसला भी है। इनमें दिल्ली का पुराना किला, उग्रसेन की बावली, महाराष्ट्र का प्रतापगढ़ किला, बुलढाना की फतेहखेड़ा मस्जिद, और वर्धा का पौनार किला जैसे ऐतिहासिक धरोहर शामिल हैं। अभी तक इन सभी पर वक्फ बोर्ड ने “वक्फ बाई यूजर” के तहत दावा ठोका हुआ था, पर अब इनके भविष्य का रुख बदल सकता है।

क्या है ‘वक्फ बाई यूजर’?

इसका तात्पर्य उन प्रॉपर्टीज़ से है, जिन्हें वक्फ बोर्ड ने केवल इस आधार पर अपनी संपत्ति घोषित कर दिया कि उनका वर्षों पहले धार्मिक उपयोग हुआ था, विशेषकर मुस्लिम समुदाय द्वारा। उदाहरण के लिए, किसी स्थान पर अगर सदियों पहले नमाज़ पढ़ी जाती थी, लेकिन आज उस प्रॉपर्टी के वैध दस्तावेज नहीं हैं, तो भी वक्फ बोर्ड ने उसे अपनी संपत्ति में शामिल कर लिया। इसे “वक्फ बाई यूजर” कहा जाता है।

नया कानून: दस्तावेज़ न हो तो संपत्ति नहीं

8 अप्रैल 2024 को संसद में पारित हुआ नया वक्फ (संशोधन) कानून अब इस धारणा को खत्म कर रहा है। इसके तहत वक्फ बोर्ड को अब छह महीने की समयसीमा में अपनी सभी प्रॉपर्टीज़ की जानकारी और उनके कानूनी दस्तावेज़ एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करने होंगे। अगर कोई प्रॉपर्टी “वक्फ बाई यूजर” के अंतर्गत आती है, लेकिन उसके दस्तावेज़ मौजूद नहीं हैं, तो उस पर बोर्ड का स्वामित्व स्वत: समाप्त हो जाएगा। यह प्रॉपर्टी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन चली जाएगी।

एक साल की कुल मोहलत

हालांकि सरकार ने वक्फ बोर्ड को शुरुआती छह महीने के बाद अतिरिक्त छह महीने का समय और दिया है — यानी कुल एक साल की मोहलत। इस दौरान वक्फ बोर्ड को अपनी सभी विवादित संपत्तियों के बारे में स्पष्ट रूप से विवरण देना होगा।

256 स्मारक — जिन पर वक्फ का दावा अब खत्म हो सकता है

ASI और JPC की रिपोर्ट्स के अनुसार देश में कुल 256 ऐसे राष्ट्रीय स्मारक हैं जिन पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है, जबकि ये पहले से ASI संरक्षित स्मारक हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं।

दिल्ली:

  • उग्रसेन की बावली: वक्फ रिकॉर्ड में इसे “मस्जिद हेली रोड” के नाम से दर्ज किया गया है। यह दावा 16 अप्रैल 1970 को किया गया था। हालांकि अब यहां कोई नमाज़ नहीं होती और मस्जिद की स्थिति बेहद जर्जर हो चुकी है।
  • पुराना किला: दिल्ली के इंद्रप्रस्थ क्षेत्र में स्थित इस किले को ASI ने राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है। लेकिन वक्फ बोर्ड इसे भी अपनी संपत्ति बताता है।

महाराष्ट्र:

  • प्रतापगढ़ फोर्ट (गोंदिया),
  • फतेहखेड़ा मस्जिद (बुलढाना),
  • रोहिनखेड़ मस्जिद,
  • पौनार किला (वर्धा),
  • बालापुर फोर्ट (अकोला)

इन सभी पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया था, जबकि ये ASI की निगरानी में हैं।

विशेषज्ञों की राय

डॉ. कैसर शमीम (पूर्व सचिव, केंद्रीय वक्फ परिषद) बताते हैं, “वक्फ बाई यूजर” का कोई मजबूत कानूनी आधार नहीं होता। जब तक किसी प्रॉपर्टी के वैध दस्तावेज़ नहीं होंगे, उसका मालिकाना हक साबित नहीं किया जा सकता।

नए कानून से इस प्रकार की अस्पष्टताओं का अंत होगा। अब कोई भी संपत्ति केवल पूर्व धार्मिक उपयोग के आधार पर वक्फ की नहीं मानी जाएगी, जब तक कि उसके प्रमाणिक दस्तावेज़ न हों।

क्या होगा आगे?

जैसे ही पोर्टल पर डिटेल्स अपलोड नहीं होंगी, वैसे ही इन 256 स्मारकों पर वक्फ का दावा रद्द हो जाएगा और ये सभी स्मारक ASI की एकमात्र जिम्मेदारी बन जाएंगे। यह न केवल देश की धरोहरों की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम होगा, बल्कि कई वर्षों से चले आ रहे कानूनी विवादों को भी खत्म करेगा।

निष्कर्ष:

वक्फ संशोधन कानून ने “वक्फ बाई यूजर” जैसे प्रावधानों पर आधारित दावों पर सख्ती से नकेल कस दी है। इससे देश की ऐतिहासिक धरोहरें अब अधिक सुरक्षित होंगी और उनका संरक्षण पारदर्शी ढंग से हो सकेगा।

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