भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे हालिया तनाव ने न सिर्फ सीमाओं पर हलचल मचाई है, बल्कि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और सत्ता संतुलन को भी उजागर कर दिया है। एक तरफ जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत के साथ सीजफायर की घोषणा की, वहीं कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान की सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के आदेश पर भारतीय सीमावर्ती राज्यों पर ड्रोन हमले शुरू हो गए। ऐसे में यह सवाल अब और अधिक गंभीर हो गया है कि पाकिस्तान में असली सत्ता किसके हाथ में है — प्रधानमंत्री के या सेना प्रमुख के?

दरअसल, शुक्रवार को अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री से बात करने के बजाय सीधे जनरल आसिम मुनीर से संपर्क किया। यह घटना यह स्पष्ट संकेत देती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अब पाकिस्तान को एक सैन्य-प्रभावित राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका जैसे देश को भी यह भलीभांति ज्ञात है कि पाकिस्तान में असल निर्णय सेना के गलियारों में ही लिए जाते हैं, न कि संसद भवन में।
शहबाज शरीफ ने जब सीजफायर की घोषणा की, तब यह माना गया कि शायद पाकिस्तान की तरफ से हिंसा पर विराम लगेगा और स्थिति सामान्य होने लगेगी। भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स) के बीच बातचीत हुई और दोनों देशों ने यह माना कि हालात को सामान्य बनाए रखना ज़रूरी है। इसके कुछ ही समय बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी दावा किया कि उनके प्रयासों से दोनों देशों के बीच संघर्षविराम हो गया है।
लेकिन शाम होते-होते कहानी ने फिर मोड़ ले लिया। पाकिस्तान की ओर से भारतीय सीमाओं में एक बार फिर ड्रोन हमले शुरू हो गए। यह घटनाक्रम स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की राजनीतिक सरकार और सैन्य नेतृत्व में गहरा अंतर है। जब प्रधानमंत्री सीजफायर की अपील कर रहे हों और सेना प्रमुख उसकी अवहेलना कर सीधे हमले का आदेश दें, तो यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि सैन्य नियंत्रण की स्थिति दर्शाता है।
इस स्थिति से एक बड़ा सवाल उठता है: क्या पाकिस्तान में लोकतंत्र वाकई में जीवित है? शहबाज शरीफ की सरकार क्या केवल एक मुखौटा है, जिसके पीछे से सेना असली खेल खेल रही है? जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि यदि नीतिगत फैसलों पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे, तो यह पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरे की घंटी है।
भारत को भी इस जटिलता को समझते हुए अपनी रणनीति बनानी होगी। कूटनीतिक स्तर पर भले ही पाकिस्तान शांति की बात करे, लेकिन जब तक सेना की नीयत में बदलाव नहीं आता, तब तक सीमाएं सुरक्षित नहीं कही जा सकतीं।

निष्कर्ष:
पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति में प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के रुख़ में फर्क साफ तौर पर नजर आता है। जब राजनीतिक नेतृत्व शांति चाहता है और सैन्य नेतृत्व युद्ध, तब देश की दिशा स्पष्ट नहीं होती — और यही बात पाकिस्तान की आज की सबसे बड़ी चुनौती है।