बजट 2025 के पेश होने से पहले लोकसभा में एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आया, जब विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बजट भाषण के दौरान हंगामा शुरू कर दिया। इस हंगामे के बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अखिलेश यादव पर गुस्से का इज़हार किया और बजट की परंपरा का हवाला देते हुए कहा कि यह व्यवहार उचित नहीं है। उनका यह बयान इस समय आया जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने बजट भाषण के लिए तैयार थीं और विपक्ष ने उनकी बातों को बाधित करना शुरू कर दिया।

दरअसल, वित्त मंत्री के बजट पेश करने से पहले सदन में विपक्षी सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया था। अखिलेश यादव भी इस हंगामे का हिस्सा थे और वह संसद में महाकुंभ में मची भगदड़ के मुद्दे को उठाना चाहते थे। यही कारण था कि उन्होंने और अन्य विपक्षी नेताओं ने इस समय पर हंगामा किया, जिससे बजट भाषण में रुकावट आई। अखिलेश यादव ने संसद भवन में प्रवेश करते समय स्पष्ट रूप से कहा था कि वह महाकुंभ में हुई भगदड़ के मामले को उठाना चाहते हैं, जिससे विपक्षी दलों ने पहले अपनी बात रखने की कोशिश की।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस हंगामे पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह कभी भी बजट भाषण में नहीं हुआ। उन्होंने अखिलेश यादव को बजट की परंपरा याद दिलाते हुए कहा कि बजट पेश करने का एक विशेष तरीका होता है और इसे इस तरह से बाधित करना उचित नहीं है। ओम बिरला ने अखिलेश को शांत करते हुए कहा कि उन्हें अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा, लेकिन बजट भाषण के दौरान सदन में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समय बजट को बाधित नहीं किया जाना चाहिए और विपक्ष को अपनी बात रखने के लिए निर्धारित समय में ही मौका मिलना चाहिए।

ओम बिरला का यह बयान संसद की कार्यवाही के दौरान अध्यक्ष की भूमिका की गंभीरता को दर्शाता है, जहां वह सदन की स्थिति को नियंत्रित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कार्यवाही शांतिपूर्वक चले। उनका यह कदम संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए था, ताकि बजट जैसे महत्वपूर्ण कार्य में किसी भी प्रकार की विघ्न-रुकावट न आए।

इस घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट होता है कि बजट के दौरान विपक्ष और सरकार के बीच की राजनीतिक तनातनी अक्सर संसद की कार्यवाही को प्रभावित करती है। हालांकि, यह भी देखा गया है कि बजट के दौरान अक्सर विपक्षी दल अपने मुद्दे उठाने की कोशिश करते हैं, लेकिन ओम बिरला ने इस बार यह संदेश दिया कि सदन की कार्यवाही को बाधित नहीं किया जा सकता है और सभी को अपनी बात रखने का सही अवसर मिलेगा।

इस तरह के हंगामे के बीच यह जरूरी हो जाता है कि राजनीतिक दलों को सदन की कार्यवाही की मर्यादा बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका का सही निर्वाह करना चाहिए, ताकि लोकतंत्र की मूल भावना बनी रहे और महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा सुचारू रूप से हो सके।

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