योगराज सिंह का बयान: ‘अगर युवराज कैंसर से मर जाते तो मुझे गर्व होता’, सुनकर मची हलचल

युवराज सिंह, भारतीय क्रिकेट का ऐसा नाम जिसे आज भी उनकी शानदार बल्लेबाजी और गेंदबाजी के लिए याद किया जाता है। उन्होंने 2011 वर्ल्ड कप में न केवल अपनी टीम को जीत दिलाई, बल्कि “प्लेयर ऑफ द सीरीज” बनकर सभी क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया। हालांकि, इस सफलता की कहानी के पीछे दर्द और संघर्ष से भरा एक ऐसा अध्याय है जिसे सुनकर हर किसी का दिल भर आता है।

योगराज सिंह का चौंकाने वाला बयान

हाल ही में, युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह ने एक ऐसा बयान दिया है जिसने सभी को चौंका दिया है। उन्होंने कहा, “अगर युवराज कैंसर से मर भी जाते और भारत को वर्ल्ड कप दिलाते, तो मैं गर्व महसूस करता।” यह बयान “अनफ़िल्टर्ड बाय सैमडिश” नामक एक पॉडकास्ट के दौरान दिया गया, जहां उन्होंने अपने बेटे के संघर्ष और बलिदान की बात की।

योगराज सिंह ने खुलासा किया कि 2011 वर्ल्ड कप के दौरान युवराज सिंह गंभीर रूप से बीमार थे और खून तक थूक रहे थे। लेकिन उन्होंने अपने बेटे से कहा, “तुम्हें मरने की चिंता नहीं करनी चाहिए, भारत को यह विश्व कप जिताना है।”

2011 वर्ल्ड कप और युवराज का संघर्ष

2011 का वर्ल्ड कप भारतीय क्रिकेट के इतिहास में खास जगह रखता है, और इसमें युवराज सिंह का प्रदर्शन अद्वितीय था। युवराज ने 90.50 की औसत और 86.19 की स्ट्राइक रेट से 362 रन बनाए और इसके साथ-साथ 15 विकेट भी लिए। उन्होंने अपनी बीमारी के बावजूद भारतीय टीम को मजबूत बनाया और अंततः भारत ने 28 साल बाद विश्व कप जीता।

लेकिन उस दौरान, युवराज के फेफड़ों में कैंसर की शुरुआती स्टेज डायग्नोस हुई थी। वर्ल्ड कप के बाद उन्हें अमेरिका में इलाज कराना पड़ा, जहां उन्होंने कैंसर से जंग लड़ी।

पिता के बयान पर मचा विवाद

योगराज सिंह के इस बयान ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। कुछ लोग इसे युवराज के संघर्ष और बलिदान की प्रशंसा मान रहे हैं, तो कुछ इसे संवेदनहीनता कह रहे हैं। हालांकि, योगराज ने स्पष्ट किया कि उनका यह बयान अपने बेटे के प्रति गर्व और देशभक्ति को दर्शाने के लिए था।

युवराज सिंह का करियर और योगदान

युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के बेहतरीन खिलाड़ियों में गिने जाते हैं। उनके छह छक्के आज भी क्रिकेट प्रेमियों के लिए यादगार पल हैं। कैंसर से लड़ाई के बाद भी उन्होंने मैदान पर वापसी की और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 2019 में उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लिया, लेकिन उनके खेल और योगदान की गूंज आज भी बरकरार है।

सीख

युवराज सिंह की कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न हो, अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं, तो सफलता जरूर मिलेगी। वहीं, योगराज सिंह का बयान यह दर्शाता है कि अपने सपनों और देश के लिए बलिदान करने वाले सच्चे नायक होते हैं।

युवराज और उनके पिता के इस अनोखे रिश्ते ने एक बार फिर सबका ध्यान खींचा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *