सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिससे देशभर के उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों के निपटान में तेजी आएगी। इस फैसले के अनुसार, अब हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए एड-हॉक (अस्थायी) जजों की नियुक्ति की जा सकेगी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने लिया, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे।

इस फैसले के तहत, हर उच्च न्यायालय को अब दो से पांच एड-हॉक जजों की नियुक्ति करने का अधिकार मिलेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस संख्या को स्वीकृत जजों की कुल संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। इन एड-हॉक जजों को उच्च न्यायालय की नियमित बेंचों में बैठने का अधिकार होगा, ताकि लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान में मदद मिल सके।

यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों से अलग है, जिसमें कुछ शर्तें रखी गई थीं। दरअसल, अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार उच्च न्यायालयों में एड-हॉक जजों की नियुक्ति की अनुमति दी थी, लेकिन साथ ही यह भी चेतावनी दी थी कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति नियमित जजों के स्थायी विकल्प के रूप में नहीं की जानी चाहिए। उस समय, कोर्ट ने कुछ स्पष्ट दिशा-निर्देश भी जारी किए थे, जिनमें एक प्रमुख शर्त यह थी कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति तभी की जा सकती है, जब उच्च न्यायालय में रिक्तियां स्वीकृत संख्या के 20 प्रतिशत से अधिक हो। इसके अलावा, अगर किसी श्रेणी के मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हों या बैकलॉग 10 प्रतिशत से अधिक हो, तो तब भी एड-हॉक जजों की नियुक्ति की जा सकती थी।

हालांकि, इस नए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इन शर्तों में कुछ ढील दी है। अब हाईकोर्ट को दो से पांच एड-हॉक जजों की नियुक्ति करने की स्वीकृति दी गई है, बशर्ते कि यह संख्या स्वीकृत जजों की कुल संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक न हो। इसका मतलब है कि अब यह प्रक्रिया ज्यादा लचीली और प्रभावी हो सकेगी, जिससे लंबित मामलों के निपटान में तेजी आ सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एड-हॉक जजों की नियुक्ति के लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया का पालन किया जाएगा, और इसे लेकर एक ज्ञापन जारी किया जाएगा। अगर भविष्य में इस प्रक्रिया में कोई बदलाव या संशोधन की आवश्यकता महसूस होती है, तो सुप्रीम कोर्ट फिर से सुनवाई कर सकता है। इसके अलावा, यदि किसी पक्ष को लगता है कि कोई समस्या है, तो वे सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकते हैं।

यह फैसला भारत में न्यायिक प्रणाली के सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे कोर्ट के बैकलॉग को कम करने और न्यायिक प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। देशभर में कई हाईकोर्ट में आपराधिक मामलों का लंबा बैकलॉग है, जिससे न्याय प्राप्त करने में देरी होती है। अब इस निर्णय के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि इन मामलों का निपटान शीघ्र होगा और न्याय प्रणाली में सुधार आएगा।

कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए एक बड़ी राहत है। इससे न केवल लंबित मामलों का निपटान तेजी से होगा, बल्कि न्याय प्रणाली पर पड़ रहे दबाव को भी कम किया जा सकेगा। इसके अलावा, यह निर्णय यह भी सुनिश्चित करेगा कि न्यायपालिका का कार्यक्षेत्र और प्रभावी ढंग से काम करे, और न्याय हर नागरिक तक तेजी से पहुंचे।

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