रोहिणी व्रत एक महत्वपूर्ण जैन धार्मिक व्रत है, जिसे विशेष रूप से महिलाएं करती हैं। यह व्रत माघ मास की शुक्ल दशमी तिथि को मनाया जाता है, जो जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक विशेष दिन है। इस दिन का महत्व न केवल महिलाओं के लिए है, बल्कि यह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र अवसर होता है, जब वे उपवास करके, पूजा करके और धार्मिक कार्यों का पालन करके पुण्य की प्राप्ति करते हैं।
रोहिणी व्रत का इतिहास और महत्व:
रोहिणी व्रत का संबंध जैन धर्म की प्राचीन परंपराओं से है। यह व्रत भगवान महावीर से जुड़ा हुआ है, और जैन धर्म के अनुयायी इसे उनके उपदेशों और धार्मिक मार्गदर्शन के आधार पर करते हैं। इस व्रत का नाम “रोहिणी” इसलिए पड़ा है क्योंकि यह व्रत विशेष रूप से रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है, जो जैन ज्योतिषशास्त्र में अत्यंत शुभ और प्रभावशाली माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह की शुक्ल दशमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में इस व्रत को किया जाता है, जो खासतौर पर महिलाएं करती हैं। इसे एक प्रकार से पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और परिवार में खुशहाली की कामना करने के रूप में देखा जाता है। जैन धर्म में, विशेष रूप से इस दिन भगवान महावीर की पूजा का महत्व होता है, क्योंकि उनके जीवन और शिक्षाओं से प्रेरित होकर इस दिन व्रति (व्रत रखने वाली महिला) अपने घर में सुख-शांति की कामना करती हैं।
रोहिणी व्रत का उद्देश्य:
रोहिणी व्रत का मुख्य उद्देश्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त करना है। महिलाएं इस व्रत के माध्यम से अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य, समृद्धि और घर में सुख-शांति की कामना करती हैं। इस व्रत को रखने से केवल धार्मिक पुण्य प्राप्त नहीं होता, बल्कि यह मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि का भी एक साधन माना जाता है।
जैन धर्म में, यह माना जाता है कि इस व्रत को करने से आत्मा की पवित्रता बढ़ती है और मनुष्य के पाप समाप्त होते हैं। इस दिन विशेष रूप से उपवास, साधना और पूजा का आयोजन किया जाता है, ताकि व्यक्ति अपने जीवन में नकारात्मकता से मुक्ति पा सके और सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर सके।
व्रत की प्रक्रिया:
इस व्रत को एक विशेष प्रकार से किया जाता है, जो जैन धार्मिक परंपराओं और संस्कारों के अनुरूप होता है:
उपवास (Fasting): इस दिन व्रति (व्रत रखने वाली महिला) उपवास करती है। उपवास का उद्देश्य शरीर की शुद्धि और आत्मा की शांति प्राप्त करना है। उपवास के दौरान, वह केवल पानी या फल खा सकती हैं और शारीरिक आराम करती हैं।
पुजा और अनुष्ठान: व्रति भगवान महावीर की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान ताजे फूल, फल, चंदन और अन्य पूजा सामग्री का उपयोग किया जाता है। पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान महावीर से आशीर्वाद प्राप्त करना और परिवार के लिए सुख, समृद्धि और शांति की कामना करना होता है। पूजा में मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और ध्यान लगाया जाता है।
दान (Charity): इस दिन दान का भी विशेष महत्व है। व्रति गरीबों और जरूरतमंदों को दान देती हैं, ताकि पुण्य की प्राप्ति हो सके। दान देने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और संतुष्टि मिलती है। यह एक तरह से भगवान महावीर के उपदेशों का पालन होता है, जिसमें दूसरों की मदद करने की बात कही जाती है।
शरीरिक और मानसिक साधना: इस दिन, व्रति शारीरिक रूप से आराम करती हैं और मानसिक रूप से ध्यान केंद्रित करती हैं। उन्हें अपने मन और भावनाओं को नियंत्रित करके सकारात्मक विचारों में लीन रहने की कोशिश करनी होती है।
सत्य बोलने का संकल्प: इस दिन व्रति अपने जीवन में सत्य बोलने और अहिंसा का पालन करने का संकल्प लेती हैं। जैन धर्म में अहिंसा (non-violence) और सत्य (truth) का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने शब्दों और आचरण में शुद्धता बनाए रखने का प्रयास करती हैं।
कहानी:
इस व्रत के पीछे एक प्राचीन कथा भी है, जिसे जैन धर्म के ग्रंथों में बताया गया है। कथा के अनुसार, एक बार एक महिला ने भगवान महावीर से उनके जीवन के बारे में सवाल पूछा कि, “मेरे परिवार की समृद्धि और खुशी के लिए क्या मुझे कुछ विशेष करना चाहिए?” भगवान महावीर ने जवाब दिया, “तुम्हारे घर की सुख-शांति के लिए यह व्रत करो और भगवान की पूजा करके अपने परिवार की समृद्धि की कामना करो।”


इस व्रत को अपनाने के बाद, महिला ने इसे अपनी कठिनाइयों से उबरने और अपने परिवार में सुख-शांति लाने के लिए किया। उसके बाद से यह व्रत अन्य महिलाओं के बीच भी लोकप्रिय हो गया।
रोहिणी व्रत का सामाजिक और मानसिक प्रभाव:
यह व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह महिलाओं के लिए मानसिक और शारीरिक शांति का स्रोत भी बनता है। यह उन्हें अपने जीवन में एक नई दिशा और आत्मविश्वास देता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं न केवल अपने परिवार के लिए दुआ करती हैं, बल्कि खुद की आत्मिक और मानसिक शांति की प्राप्ति करती हैं।
समाप्ति:
रोहिणी व्रत को बड़े श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाता है। यह व्रत एक न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह एक जीवन शैली भी बन जाता है, जिसमें हर महिला अपने घर के लिए शुभकामनाएं और आशीर्वाद प्राप्त करती है।
इस व्रत को पूरा करने के बाद, व्रति फल, तिल, चंदन और अन्य पूजा सामग्री से भगवान महावीर की पूजा करती हैं और अपने जीवन में खुशहाली की कामना करती हैं। यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक साधन है।