प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 अब अपनी तमाम यादों को समेटे विदा ले चुका है। ढाई महीने तक चले इस महापर्व ने करोड़ों श्रद्धालुओं को आध्यात्म, आस्था और परंपरा के एक अद्भुत संगम से जोड़ा। संगम तट पर डुबकी लगाकर लोगों ने अपने पापों से मुक्ति की प्रार्थना की, संत-महात्माओं की वाणी से जीवन के गूढ़ रहस्यों को जाना और महाकुंभ की दिव्यता में रमकर अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया।
महाकुंभ के इस विशाल आयोजन को कवर करने के लिए दैनिक भास्कर के रिपोर्टर्स भी दिन-रात ग्राउंड जीरो पर डटे रहे। उन्होंने हर छोटी-बड़ी खबर को पाठकों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। यह महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यहां जीवन, समाज और परंपराओं की असंख्य कहानियां लिखी गईं।

महाकुंभ में जीवन के रंग: कोई आया, कोई हमेशा के लिए चला गया
महाकुंभ में कई लोग सिर्फ पुण्य कमाने के लिए नहीं आते, बल्कि कुछ अपने जीवन की सबसे भावुक घड़ियों को जीने और स्वीकारने के लिए भी यहां पहुंचते हैं। संगम तट पर कुछ लोग अपनों को अंतिम विदाई देने आते हैं। कई परिवार वृद्ध माता-पिता को यहां छोड़कर चले जाते हैं, यह सोचकर कि वह अपने आखिरी दिन प्रभु भक्ति और साधुओं की संगति में गुजार सकें।
महाकुंभ में कई साधु-संतों की कहानियां भी अनोखी रहीं। किसी ने यहां जीवनभर की तपस्या का फल पाया, तो किसी ने दुनिया को त्यागकर सन्यास का मार्ग अपनाया। कुछ संतों का रहन-सहन, उनकी दिनचर्या और उनके अनुयायियों का उनके प्रति अगाध प्रेम, यह सब कुछ महाकुंभ के अनूठे पहलुओं को उजागर करता है।
चिमटेवाले बाबा और सोशल मीडिया सनक
महाकुंभ में चिमटेवाले बाबा एक अनोखे कारण से सुर्खियों में रहे। आम श्रद्धालुओं से वे सहज भाव से मिलते थे, लेकिन जब कोई यूट्यूबर या सोशल मीडिया क्रिएटर कैमरा लेकर उनके पास पहुंचता, तो बाबा अचानक आक्रामक हो जाते और उन पर चिमटे से प्रहार कर देते! यह घटना कई बार दोहराई गई, लेकिन फिर भी लोग बाबा के पास जाने से खुद को रोक नहीं पाए। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इन वीडियो ने कई सवाल भी खड़े किए—क्या आधुनिक युग में संतों की छवि भी डिजिटल माध्यमों से प्रभावित हो रही है?
भास्कर रिपोर्टर्स के अनुभव: दिन-रात का संघर्ष और अनछुए पल
महाकुंभ को कवर करना आसान नहीं था। लाखों श्रद्धालुओं की भीड़, प्रशासनिक चहल-पहल, सुरक्षा की कड़ी निगरानी—इन सबके बीच रिपोर्टिंग करना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन हमारे रिपोर्टर्स ने न केवल पल-पल की अपडेट्स दीं, बल्कि जब जरूरत पड़ी, तब श्रद्धालुओं की मदद करने से भी पीछे नहीं हटे।
इस दौरान कई ऐसे अनुभव सामने आए जो कभी भुलाए नहीं जा सकते। किसी बुजुर्ग को परिवार से मिलाने में मदद करनी हो, या संगम में डुबकी लगाने आए एक विदेशी को गंगा आरती का महत्व समझाना हो—भास्कर की टीम हर स्थिति में अपने कर्तव्य को निभाने के लिए तत्पर रही।
महाकुंभ की विदाई: अगले मिलन तक का इंतजार

महाकुंभ 2025 विदा हो चुका है, लेकिन इसकी यादें सदियों तक जीवित रहेंगी। जब संगम तट की रेत पर आखिरी बार श्रद्धालुओं के कदम पड़े, जब आखिरी संत अपनी कुटिया से विदा हुए और जब आखिरी आचमन करके कोई साधक वहां से लौटा—तब एक नए इंतजार की घड़ी शुरू हो गई। अगले महाकुंभ तक, यह आस्था का प्रवाह यूं ही लोगों के मन में चलता रहेगा।