अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित “One Big Beautiful Bill Act” भारतीय प्रवासियों के लिए एक बड़ा वित्तीय झटका साबित हो सकता है। इस विधेयक को हाल ही में अमेरिकी हाउस बजट कमेटी ने मंजूरी दी है। इस कानून का उद्देश्य अमेरिका में रह रहे गैर-अमेरिकी नागरिकों द्वारा विदेशों में भेजे जा रहे पैसे (रेमिटेंस) पर 5% टैक्स लगाना है।

इस प्रस्तावित कानून के तहत अमेरिका में रह रहे लगभग 45 लाख भारतीय, जिनमें 32 लाख भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं, प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे। इनमें बड़ी संख्या में H-1B वीजा होल्डर्स, स्टूडेंट्स, और ग्रीन कार्ड धारक शामिल हैं जो नियमित रूप से भारत में अपने परिवार को पैसे भेजते हैं।

इस बिल के अनुसार, किसी भी गैर-अमेरिकी नागरिक द्वारा किए गए अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रांसफर पर 5 प्रतिशत टैक्स काटा जाएगा। ये कटौती उसी समय होगी जब ट्रांसफर किया जाएगा, जिसे ‘point of transfer’ पर रोक कहा जा रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस टैक्स के लिए कोई न्यूनतम सीमा नहीं तय की गई है, यानी चाहे कोई 50 डॉलर भेजे या 5000 डॉलर, दोनों पर 5% टैक्स लागू होगा।

हालांकि इस बिल में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि पैसे भेजने वाला व्यक्ति ‘verified US sender’ यानी अमेरिकी नागरिक है, तो उस पर यह टैक्स लागू नहीं होगा। लेकिन भारतीय प्रवासी जो अभी भी अमेरिका में निवासी या वीजा धारक के रूप में रह रहे हैं, उन्हें यह टैक्स देना ही होगा।

इस प्रस्ताव के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि अमेरिका को अपनी अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे कदम उठाने की जरूरत है ताकि अधिक पूंजी देश के भीतर ही रहे और ‘America First’ पॉलिसी को बढ़ावा मिले। हालांकि आलोचकों का मानना है कि यह कदम प्रवासी समुदाय, विशेषकर भारतीयों के लिए एक अनुचित आर्थिक बोझ साबित होगा।

ट्रंप के इस प्रस्ताव पर अमेरिका में ही काफी राजनीतिक बहस छिड़ चुकी है। कई सांसदों और सामाजिक संगठनों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है और कहा है कि इससे प्रवासी समुदाय के साथ भेदभाव होगा और उनके परिवारों पर आर्थिक संकट गहराएगा।

भारत सरकार की ओर से अभी इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अगर यह बिल कानून बनता है, तो भारत कूटनीतिक माध्यमों से इस पर आपत्ति दर्ज करवा सकता है।

ट्रंप का यह बिल अभी केवल कमेटी स्तर पर पास हुआ है, इसे कानून बनने के लिए सीनेट और राष्ट्रपति की मंजूरी की भी जरूरत होगी। फिलहाल भारतीय समुदाय और विशेषज्ञ इस पर करीब से नजर बनाए हुए हैं।

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