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Rahul Dravid's Biggest Regret: Ignoring Sachin Tendulkar’s Advice on DRS in 2011 England Tour

2011 के इंग्लैंड दौरे के दौरान एक बड़े फैसले को लेकर राहुल द्रविड़ ने हाल ही में बड़ा अफ़सोस जताया है। दिग्गज भारतीय क्रिकेटर और वर्तमान में टीम के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ ने एक इंटरव्यू में उस घटना का ज़िक्र किया, जिसमें उन्होंने सचिन तेंदुलकर के सलाह को मानकर जो निर्णय लिया, उस पर उन्हें पछतावा हुआ। उन्होंने बताया कि वह उस वक्त भारत के लिए बेहद कठिन दौर से गुजर रहे थे और उस फैसले ने मैच के परिणाम और उनके मनोबल दोनों पर असर डाला।

राहुल द्रविड़ ने पूर्व भारतीय स्पिनर रविचंद्रन अश्विन के साथ हुई बातचीत में बताया कि 2011 के इंग्लैंड दौरे के दौरान वह एक बार आउट हो गए थे, लेकिन उस समय उपलब्ध डीआरएस (Decision Review System) का इस्तेमाल नहीं किया। उस समय सचिन तेंदुलकर ने उन्हें सलाह दी थी कि वे डीआरएस का इस्तेमाल न करें, क्योंकि उस वक्त टीम की स्थिति और मैच का दबाव बहुत अधिक था। द्रविड़ ने कहा कि उस फैसले को लेकर टीम में “बड़ी हल्ला-गुल्ला” था और उन्होंने वह सलाह मान ली।

लेकिन बाद में जब रिव्यू की गई तो पता चला कि वह वास्तव में आउट नहीं थे। इस घटना ने द्रविड़ को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने डीआरएस लिया होता, तो न केवल वे अपने रन बना सकते थे, बल्कि शायद पूरे मैच का परिणाम भी कुछ और होता। उन्होंने इस बात को अपना सबसे बड़ा अफ़सोस बताया।

द्रविड़ ने बताया कि उस समय टीम काफी दबाव में थी और सचिन तेंदुलकर की सलाह उनके लिए महत्वपूर्ण थी। लेकिन आज जब वह पीछे मुड़कर देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि उस निर्णय को लेना चाहिए था, क्योंकि तकनीक का सही इस्तेमाल क्रिकेट में बड़े बदलाव ला सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि क्रिकेट जैसे खेल में तकनीक और इंसान दोनों का संतुलन बहुत जरूरी है, लेकिन दबाव में सही निर्णय लेना सबसे मुश्किल होता है।

राहुल द्रविड़ के इस बयान से यह भी साफ होता है कि महान खिलाड़ियों को भी कभी-कभी सलाह के मामले में भ्रम होता है, खासकर जब खेल का दबाव और परिस्थिति जटिल हो। द्रविड़ ने यह भी माना कि सचिन तेंदुलकर के अनुभव का सम्मान करते हुए भी, अपनी समझ पर भरोसा करना जरूरी होता है।

2011 का इंग्लैंड दौरा भारतीय क्रिकेट के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था। टीम कई मुकाबलों में संघर्ष करती नजर आई। उस दौर में खिलाड़ियों के मनोबल और रणनीति दोनों पर गहरा असर पड़ा था। द्रविड़ की यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक छोटा सा निर्णय पूरे मैच और करियर को प्रभावित कर सकता है।

इसके अलावा, द्रविड़ ने कहा कि आज के समय में खिलाड़ियों को तकनीक का सही इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें निर्णय लेने की पूरी आज़ादी दी जाती है। लेकिन तब के दौर में टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों की सलाह का महत्व बहुत अधिक होता था।

इस पूरे मामले से यह सबक भी मिलता है कि क्रिकेट जैसे खेल में गलती से सीखना और आगे बढ़ना जरूरी है। द्रविड़ ने अपनी गलती स्वीकार कर टीम को एक नया दृष्टिकोण दिया है कि खिलाड़ी हमेशा अपनी समझ और परिस्थिति के हिसाब से निर्णय लें।

इस घटना से प्रेरणा लेकर वर्तमान भारतीय क्रिकेट टीम भी बेहतर निर्णय लेने के लिए तकनीक और रणनीति का बेहतर उपयोग कर रही है। राहुल द्रविड़ का यह अनुभव युवा खिलाड़ियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण सबक है कि कभी-कभी बड़े खिलाड़ियों की सलाह सही होती है, लेकिन अंततः अपने फैसले पर भरोसा करना भी जरूरी होता है।

यह घटना क्रिकेट प्रेमियों और खिलाड़ियों दोनों के लिए एक यादगार मोड़ रही, जिसने तकनीक के महत्व को और अधिक उजागर किया। द्रविड़ की ईमानदारी और आत्मावलोकन ने उन्हें और भी बड़ा नेता बनाया है, जो न केवल अपने अनुभव से बल्कि अपनी गलतियों से भी सीखते हैं।

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