बजट का नाम सुनते ही दिमाग में एक बड़ा ही जटिल और द्रुत गति से चलने वाला आर्थिक लेखा-जोखा खड़ा हो जाता है, लेकिन बजट उतना भी जटिल नहीं है। दरअसल, बजट एक तरह से सरकार के वित्तीय लेन-देन का लेखा-जोखा है, जिसमें यह तय किया जाता है कि सरकार के पास कितना पैसा आएगा और वह कहां खर्च होगा। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे हम अपने घर में पैसे की आमदनी और खर्च का हिसाब रखते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि सरकार पूरे साल का हिसाब देती है, जबकि हम आमतौर पर महीने का हिसाब रखते हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, जो कि 1 फरवरी 2025 को लगातार आठवीं बार बजट पेश करने जा रही हैं, इसे बनाने में लगभग 6 महीने लगते हैं और इसे संसद में चर्चा के लिए 40 दिन दिए जाते हैं। तो सवाल यह उठता है कि बजट क्या है और यह कैसे तैयार होता है? सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है?
बजट क्या है? बजट का मतलब है सरकार का सालाना हिसाब-किताब, जिसमें उसकी आमदनी और खर्च का विवरण होता है। सरकार किस तरह पैसे कमाएगी, कौन सी योजनाओं के लिए कितना पैसा खर्च किया जाएगा, यह सब इस बजट में शामिल होता है। एक दिलचस्प बात यह है कि हमारे संविधान में बजट का कोई उल्लेख नहीं है, इसे “एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट” कहा जाता है। संविधान के अनुसार, सरकार को संसद में सालाना अपने खर्चे और आय का हिसाब देना आवश्यक होता है।
आमदनी के लिए टैक्स बढ़ाएं या कर्ज लें? जब बजट तैयार किया जाता है तो वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि सरकार के लिए पैसा कहां से आएगा। क्या टैक्स बढ़ाए जाएं, या फिर कर्ज लिया जाए? इसके साथ ही यह भी तय करना होता है कि कौन से खर्चे प्राथमिकता पर होंगे, जैसे पुल या सड़कें बनवानी हैं या फिर कर्मचारियों की सैलरी बढ़ानी है।
सरकार के पास दो प्रमुख स्रोत होते हैं – एक होता है रेवेन्यू (आमदनी) और दूसरा होता है कैपिटल (पूंजी)। रेवेन्यू में उस पैसे का हिसाब होता है जो बार-बार आता है, जैसे टैक्स, जबकि कैपिटल वह पैसे होते हैं जो कभी-कभी आते हैं, जैसे कर्ज और सरकारी बॉन्ड से प्राप्त पैसा।
रेवेन्यू और कैपिटल का अंतर रेवेन्यू का मतलब है, वो पैसे जो बार-बार सरकार के पास आते हैं। जैसे किसी नागरिक से टैक्स लिया गया, या कोई अन्य नियमित आय स्रोत। वहीं, कैपिटल से मतलब है वह पैसे जो कभी-कभी आते हैं। जैसे कर्ज लेना या कोई एक बार का निवेश।
समान रूप से, सरकार की कोशिश होती है कि उसका रेवेन्यू खर्च कम से कम हो, जैसे कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन या सब्सिडी की बढ़ती लागत। यह खर्च बार-बार होता है और सरकार इसके लिए ज्यादा पैसे नहीं चाहती। दूसरी ओर, सरकार के कैपिटल खर्च पर ज्यादा जोर होता है, जैसे सड़कें, पुल, हाईवे, एयरपोर्ट और बिजली घरों का निर्माण, जो भविष्य में सरकार की आय को बढ़ा सकते हैं। ये खर्च कभी-कभार होते हैं, लेकिन सरकार इन्हें ज्यादा करती है क्योंकि यह राष्ट्रीय विकास में सहायक होते हैं।
बजट में किसे क्या प्राथमिकता मिलती है? सभी जानते हैं कि बजट में सरकार को कई प्रकार के खर्चों के बीच संतुलन बनाना होता है। जैसे सरकार चाहती है कि आम लोगों को अच्छी सैलरी और पेंशन मिले, लेकिन साथ ही वह इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट जैसे हाईवे, रेलवे, और एयरपोर्ट पर भी खर्च करना चाहती है। तो, वित्त मंत्री को यह तय करना होता है कि कितने पैसे खर्च किए जाएं और कितने पैसे बचाए जाएं, ताकि देश का समग्र विकास हो सके।
इसलिए, बजट कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं होती, यह एक ऐसा दस्तावेज है, जो हर साल आर्थिक परिपेक्ष्य को निर्धारित करता है और देश की विकास यात्रा को आकार देता है।