केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल ही में आए एक फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इस फैसले में कोर्ट ने यह कहा था कि अगर किसी महिला को गलत तरीके से पकड़ा जाता है और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा जाता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। इसके बजाय, इसे निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला माना जाएगा। इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री ने इसे “गलत फैसला” करार दिया और सुप्रीम कोर्ट से इस पर ध्यान देने का आग्रह किया।

अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि यह फैसला समाज में गलत संदेश भेजेगा और इससे महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में न्याय की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि इस तरह के फैसले पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह महिलाओं के अधिकारों और उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को कमतर आंकने जैसा होगा। उनके अनुसार, किसी महिला के साथ इस तरह की घटना को सिर्फ इसलिए सामान्य नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह बलात्कार के दायरे में नहीं आता है। उनका मानना है कि इस प्रकार के फैसले से समाज में महिला सुरक्षा को लेकर गलत संदेश जाएगा, जो आगे चलकर महिलाओं को और अधिक असुरक्षित बना सकता है।
इस फैसले को लेकर एक और कड़ी प्रतिक्रिया दिल्ली महिला आयोग (DCW) की पूर्व प्रमुख और आम आदमी पार्टी (AAP) की सांसद स्वाति मालीवाल ने व्यक्त की है। मालीवाल ने इस फैसले को बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि वह फैसले में की गई टिप्पणियों से स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा, “यह बहुत शर्मनाक स्थिति है। उन पुरुषों द्वारा किया गया कृत्य बलात्कार के दायरे में क्यों नहीं आता?” मालीवाल ने यह भी कहा कि उन्हें इस फैसले के पीछे का तर्क समझ में नहीं आता और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है। उनका मानना है कि यह फैसला महिलाओं के खिलाफ अपराधों को उचित ठहराने जैसा है, जो बिल्कुल गलत है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस फैसले में न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दो आरोपियों के पक्ष में निर्णय सुनाया था, जिन्होंने बलात्कार के आरोप में उन्हें सम्मन भेजने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति मिश्रा का कहना था कि आरोपियों के खिलाफ बलात्कार का मामला नहीं बनता क्योंकि उन्होंने महिला को न तो पूरी तरह से निर्वस्त्र किया और न ही बलात्कार की घटना को अंजाम दिया। इसके बजाय, उनके अनुसार यह केवल महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला था।
इस फैसले ने समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की गंभीरता को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और नेताओं ने इस फैसले को बेहद भ्रामक और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को प्रोत्साहित करने वाला बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला एक गलत प्रिसिडेंट सेट करेगा और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में न्याय के मिलने में और अधिक समस्याएँ पैदा करेगा।
केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी और स्वाति मालीवाल की चिंताएं और टिप्पणियां बिल्कुल सही हैं, क्योंकि इस प्रकार के फैसले महिलाओं की सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं और समाज में यह संदेश दे सकते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध को नजरअंदाज किया जा सकता है। यह समय की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर जल्द से जल्द ध्यान दे और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर कड़े और स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे।

कुल मिलाकर, यह मामला महिलाओं के अधिकारों और उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर समाज में एक बड़े संवाद की जरूरत को उजागर करता है। इस फैसले से यह स्पष्ट होताहै कि न्यायालयों को महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर और अधिक संवेदनशील और जागरूक होना चाहिए, ताकि महिला सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।