इरफ़ान पठान और एमएस धोनी से जुड़ा वायरल ‘हुक्का’ बयान एक बार फिर सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है। हाल ही में इरफ़ान पठान का एक पुराना इंटरव्यू क्लिप सामने आया, जिसमें उन्होंने यह संकेत दिया था कि कैसे टीम इंडिया से बाहर होने के पीछे कुछ आंतरिक कारण रहे, जिनमें तत्कालीन कप्तान एमएस धोनी की भूमिका पर सवाल उठते हैं। यह वीडियो करीब पांच साल पुराना है, लेकिन अब जब यह दोबारा सामने आया, तो इरफ़ान ने खुद सोशल मीडिया पर सफाई देते हुए कहा कि इस क्लिप को ‘संदर्भ से हटाकर’ और ‘तोड़-मरोड़कर’ पेश किया जा रहा है।

अब असल सवाल यह उठता है कि यदि उस समय इरफ़ान ने जो कहा था, वह उनके अनुभव के अनुसार सच था, तो अब उसकी सफाई देने की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या यह पीआर लॉबी का दबाव था, या फिर सोशल मीडिया पर हो रही आलोचना से बचने की कोशिश? या फिर यह उस बयान से पीछे हटने जैसा है?
इरफ़ान पठान एक सम्मानित क्रिकेटर रहे हैं और उनका करियर कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। उन्होंने 2007 के टी20 वर्ल्ड कप में भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी और 2012 में अपना आखिरी वनडे खेलते हुए भी 5 विकेट झटके थे। इसके बावजूद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया, जो स्वाभाविक रूप से उनके लिए निराशाजनक रहा। समय-समय पर उन्होंने यह इशारा किया है कि टीम में चयन की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी और कुछ खिलाड़ियों को प्राथमिकता दी जाती थी। इसी संदर्भ में उन्होंने ‘हुक्का’ वाली घटना का ज़िक्र किया था, जो एक बड़े समूह के खिलाड़ियों को लेकर टीम के ड्रेसिंग रूम के कल्चर की ओर इशारा करता है।
लेकिन अब जब वही बयान दोबारा वायरल हुआ, तो इरफ़ान ने सफाई देते हुए लिखा कि वे अपने साथियों का हमेशा सम्मान करते आए हैं और यह वीडियो उनके पूरे विचारों को नहीं दर्शाता। यह बात कहीं न कहीं यह दर्शाती है कि या तो वे अब उस बयान से असहज महसूस कर रहे हैं या फिर बदलते समय में उनकी सोच में बदलाव आया है।
समस्या यह नहीं है कि उन्होंने सफाई क्यों दी, बल्कि यह है कि पहले जो बात उन्होंने खुले रूप में कही थी, अब उससे दूरी बनाना उनके ही शब्दों को कमजोर कर देता है। यदि वह वाकई उनके अनुभव थे, तो उन्हें उसी आत्मविश्वास के साथ अब भी खड़े रहना चाहिए था। और अगर वह बयान सच में संदर्भ से काटकर पेश किया गया है, तो उन्हें उस संदर्भ को साफ़ तौर पर सामने लाना चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम से यही समझ आता है कि भारतीय क्रिकेट में अभी भी कई ऐसी कहानियाँ हैं जो अधूरी हैं। खिलाड़ी जब एक्टिव करियर में होते हैं, तब सच नहीं बोलते, और जब बोलते हैं, तो बाद में दबाव में सफाई देने लगते हैं। ऐसे में फैंस के लिए सच्चाई जानना मुश्किल हो जाता है। इसलिए ज़रूरी है कि खिलाड़ी अपने अनुभवों को स्पष्ट, संपूर्ण और समय पर साझा करें – ताकि सच को कभी संदर्भ से न तोड़ा जा सके और न ही उससे पीछे हटने की ज़रूरत पड़े।
