अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों पर एस. जयशंकर का बयान: इतिहास और ओसामा बिन लादेन की याद दिलाई

हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका को पाकिस्तान के साथ अपने इतिहास को नहीं भूलना चाहिए। जयशंकर ने 2011 में ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान के एबटाबाद में पाए जाने की घटना को याद दिलाते हुए कहा कि दुनिया का सबसे वांछित आतंकवादी एक सैन्य शहर में छुपा हुआ था, और इससे यह साफ होता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता रहा है।
जयशंकर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका की ओर से पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया देखने को मिल रहा है। उन्होंने बिना लाग-लपेट के यह स्पष्ट किया कि भारत अपनी सुरक्षा और रणनीति के मामलों में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता।
उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए उस दावे का भी जवाब दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान संघर्षविराम कराने में मध्यस्थता की थी। जयशंकर ने कहा कि इस मामले में उन्होंने अमेरिकी पक्ष से बातचीत अवश्य की थी, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम का निर्णय दोनों देशों ने आपसी सहमति से लिया था, न कि किसी बाहरी दबाव में।
एस. जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत अब एक नया भारत है, जो अपनी विदेश नीति को आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करता है। उन्होंने पाकिस्तान की आतंकवाद को लेकर दोहरी नीति पर भी सवाल उठाए और कहा कि दुनिया को यह समझना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सच्चे सहयोगी कौन हैं।
जयशंकर ने यह भी इशारा किया कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि proactively अपनी स्थिति स्पष्ट करता है और अपने हितों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि चाहे सीमा पार आतंकवाद हो, या वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका — भारत अब दबाव में आकर नहीं, बल्कि अपने आत्मबल और रणनीतिक सोच के आधार पर निर्णय लेता है।
इस पूरे बयान का उद्देश्य यह था कि अमेरिका और अन्य वैश्विक ताकतों को यह याद दिलाया जाए कि पाकिस्तान का अतीत क्या रहा है और कैसे उसने आतंकवाद को आश्रय दिया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि भारत अब किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा, विशेषकर जब बात उसके संप्रभु हितों की हो।

जयशंकर के इस बयान को भारत की विदेश नीति के एक स्पष्ट और सशक्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है — जिसमें न तो कोई झिझक है और न ही कोई भ्रम।