मोदी-पुतिन-शी की मुस्कान से क्यों कांप उठे अमेरिका?”
हाल ही में संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन की एक तस्वीर ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस तस्वीर में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मुस्कुराते हुए एक-दूसरे से बातचीत कर रहे हैं। लेकिन यह सामान्य-सी प्रतीत होने वाली तस्वीर ने अमेरिकी मीडिया में हलचल मचा दी है।
अमेरिकी मीडिया हेडलाइंस ने लिखा:
“Modi-Putin-Xi pic should send chill down every American’s spine.”
यानी, “मोदी-पुतिन-शी की तस्वीर हर अमेरिकी की रीढ़ में सिहरन पैदा कर देनी चाहिए।”

दरअसल, इस एक तस्वीर में तीन बड़ी वैश्विक ताक़तों का साथ आना केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए एक चिंताजनक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। विशेष रूप से तब, जब अमेरिका की नीतियाँ — जैसे कि ट्रंप प्रशासन के दौरान लगाए गए कड़े टैरिफ (आयात शुल्क) — इन तीनों देशों पर असर डाल चुकी हैं। ये देश अब किसी न किसी रूप में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने के प्रयास में एकजुट होते नज़र आ रहे हैं।
भारत की भूमिका क्यों है महत्वपूर्ण?
भारत हमेशा से वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति अपनाता रहा है। भारत रूस का पारंपरिक रणनीतिक साझेदार रहा है, वहीं हाल के वर्षों में अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भी उसके रिश्ते मज़बूत हुए हैं। दूसरी ओर, चीन के साथ भारत के संबंध जटिल और संघर्षपूर्ण रहे हैं, खासकर सीमा विवाद के बाद।
लेकिन SCO जैसे मंच पर, इन तीनों नेताओं का साथ आना केवल प्रतीकात्मक नहीं है, यह दर्शाता है कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर अपनी भूमिका को लेकर कितना सजग और संतुलित है।
क्या अमेरिका को डरने की ज़रूरत है?
अमेरिकी विश्लेषकों का मानना है कि यह तस्वीर एक संकेत है कि यदि अमेरिका अपनी व्यापार और भू-राजनीतिक नीतियों में कठोर रुख अपनाता है, तो ये शक्तिशाली देश एक वैकल्पिक ध्रुव बना सकते हैं। वैश्विक सत्ता संतुलन की दिशा में यह एक संभावित बदलाव हो सकता है।
मुस्कान में छिपा संदेश
जहां एक ओर ये मुस्कुराते नेता आपस में सौहार्द्र दिखा रहे थे, वहीं उनके पीछे की राजनीतिक परतें कहीं अधिक गहरी और रणनीतिक हैं। यह तस्वीर दिखाती है कि भले ही देशों के बीच मतभेद हों, भविष्य की भू-राजनीति में नए समीकरण बन रहे हैं।
यह केवल एक फोटो नहीं थी — यह एक भविष्य की झलक थी, जो शायद आने वाले समय में अमेरिका की नीतियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है।
