भारत के खिलाफ हाल ही में हुए सैन्य संघर्ष में भारी नुकसान उठाने के बाद, पाकिस्तान सरकार अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति को बचाने और भारत की कूटनीतिक बढ़त को संतुलित करने के लिए एक व्यापक कूटनीतिक अभियान चला रही है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में पाकिस्तान ने दो समांतर कूटनीतिक मिशन विश्व की प्रमुख राजधानियों में भेजे हैं, जिनका उद्देश्य वैश्विक समुदाय को “भारत की आक्रामकता” के खिलाफ पाकिस्तान के पक्ष को समझाना और बातचीत के माध्यम से विवाद सुलझाने की मांग करना है।
यह कूटनीतिक पहल उस वक्त शुरू की गई है जब भारत ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद अपने ही एक बहुपक्षीय कूटनीतिक मिशन को अंजाम दिया था। भारत ने 33 देशों में सात संसदीय प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं, जिनके माध्यम से भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को पनाह देने और प्रायोजित करने का आरोप लगाया है और वैश्विक दबाव डालने की मांग की है।
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की संरचना

पाकिस्तान की ओर से इस वक्त एक नौ सदस्यीय उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रसेल्स की यात्रा पर है। इस दल का नेतृत्व पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी कर रहे हैं। उनके साथ फेडरल मिनिस्टर मुसादिक मलिक, पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार, खुर्रम दस्तगीर खान, और पूर्व विदेश सचिवों में जलील अब्बास जिलानी व तहमीना जंजुआ जैसे अनुभवी राजनयिक भी शामिल हैं। ये सभी अपने-अपने अनुभवों के आधार पर पाकिस्तान के पक्ष को मजबूती से दुनिया के सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं।
पाकिस्तान की चिंता और रणनीति
पाकिस्तान का कहना है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद से जोड़ने की जो कोशिश कर रहा है, वह एकतरफा और गलत है। पाकिस्तान चाह रहा है कि वैश्विक समुदाय भारत को “आक्रामक” नीति अपनाने से रोके और कश्मीर विवाद के समाधान के लिए दोनों देशों के बीच वार्ता की बहाली को प्राथमिकता दे।
हालांकि, अब तक पाकिस्तान की ये कोशिशें कोई विशेष अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं जुटा पाई हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे शक्तिशाली देश पाकिस्तान से स्पष्ट और निर्णायक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, विशेषकर आतंकवादी संगठनों के खिलाफ। वहीं भारत की ओर से लगातार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेरा जा रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने पाकिस्तान की इस कूटनीतिक गतिविधि को “दुनिया को गुमराह करने की कोशिश” करार दिया है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन पर पल रहे आतंकी ढांचे को खत्म नहीं करता, तब तक उसकी कोई भी कूटनीतिक पहल न तो भरोसेमंद मानी जाएगी और न ही सफल।”
निष्कर्ष

पाकिस्तान के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है। एक ओर सैन्य स्तर पर झटका, दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलगाव और तीसरी ओर घरेलू राजनीतिक अस्थिरता—इन सबके बीच पाकिस्तान की यह कूटनीतिक कवायद उसकी छवि को सुधारने की एक आखिरी कोशिश मानी जा रही है। लेकिन इसके नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि वह सिर्फ बातें करता है या धरातल पर भी कुछ ठोस कार्रवाई करता है।