राहुल गांधी का चुनावी घोटाले का दावा: राजनीति से आगे सोचने का वक्त

7 अगस्त को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक सनसनीखेज दावा करते हुए कहा कि बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा खंड में “व्यवस्थित चुनावी धोखाधड़ी” की गई है। उनका आरोप है कि यहां एक लाख दो हजार पचास “फर्जी और अवैध वोट” जोड़े गए, जिससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी पी.सी. मोहन को फायदा पहुंचा। राहुल गांधी के अनुसार, यह फर्जीवाड़ा उस 32,707 वोटों के अंतर से भी अधिक है, जिससे पी.सी. मोहन विजयी घोषित हुए।

यह आरोप केवल एक सामान्य चुनावी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि राहुल गांधी का कहना है कि चुनाव आयोग स्वयं इस “व्यवस्थित फर्जीवाड़े” में शामिल रहा है या जानबूझकर इसे नजरअंदाज किया गया है। यह सीधा-सीधा भारत के लोकतंत्र की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाने जैसा है।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग समय-समय पर मतदाता सूचियों में विसंगतियों को सुधारने के लिए कदम उठाता रहा है, लेकिन इस मामले में कांग्रेस का दावा है कि जानबूझकर फर्जी वोट जोड़े गए ताकि भाजपा को फायदा मिल सके। राहुल गांधी के इस अभियान का चेहरा भले ही वे स्वयं हों, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इस पूरे मामले की तह तक जाने का कार्य कांग्रेस प्रत्याशी मंसूर अली खान ने किया है। वे बेंगलुरु सेंट्रल सीट से चुनाव लड़े थे और हार के बाद उन्होंने इस पूरे मामले की पड़ताल में अपने संसाधनों का इस्तेमाल किया।

मंसूर अली खान कोई साधारण उम्मीदवार नहीं हैं, वे एक प्रभावशाली स्थानीय नेता हैं जिनकी वित्तीय और सामाजिक पकड़ मजबूत मानी जाती है। उन्होंने कथित फर्जी वोटों के प्रमाण इकट्ठा करने के लिए विस्तृत जांच की, जो अब कांग्रेस पार्टी के बड़े आरोप का आधार बन रहे हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या इस आरोप की निष्पक्ष जांच होगी? क्या चुनाव आयोग अपने ऊपर लगे इतने गंभीर आरोपों का जवाब देगा या फिर इसे राजनीति करार देकर नकार देगा?

भारत में लोकतंत्र की नींव “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव” पर टिकी है। यदि एक लाख से ज्यादा फर्जी वोटों की बात सही साबित होती है, तो यह सिर्फ एक सीट का मामला नहीं होगा, बल्कि पूरे चुनावी तंत्र की साख पर सवाल होगा। ऐसे में जरूरी है कि इस आरोप की पूरी निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो। यह समय सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी का नहीं, बल्कि तथ्यों और सच्चाई को सामने लाने का है।

राजनीति से आगे बढ़कर, अब वक्त है कि देश का लोकतंत्र खुद को सच के आईने में देखे — चाहे वह जितना भी असहज क्यों न हो।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *