दिनाक 26/11/2023देहरादून में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से सात दिवसीय शिव कथामृत आयोजन को किया जा रहा है। इस कथा के माध्यम से साध्वी गरिमा भारती जी ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति गाथा को समस्त श्रद्धालु गणों के समक्ष रखा अवंतिका नगरी में पेट प्रिय ब्राह्मण की भक्ति को खंडित करने के लिए जिसमें दूषण राक्षस ने आक्रमण किया भगवान भोलेनाथ महाकाल के स्वरूप में प्रकट होकर दूषण का वध कर भक्त वेद प्रिय ब्राह्मण की रक्षा करते हैं। भक्तों की प्रार्थना पर अपने महाकालेश्वर स्वरूप को उन्होंने उज्जैन के अंदर स्थापित किया। दूषण वास्तव में प्रतीक है? मानव के मन की दुष्ट प्रवृत्तियों, दुष्कर्म। आज दूषण रुपी असुर के प्रभाव के कारण ही मानव का जो कर्म है वह असुरों के जैसा है।
आज समाज में सबसे बड़ी चुनौती है एक मानव को मानव बनाना। जिस चुनौती को सदैव अध्यात्म ने स्वीकारा। आशुतोष महाराज ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर मानव को शाश्वत भक्ति के साथ जोड़कर उसके विचारों को परिवर्तित कर, सही मायने में एक इंसान बना रहे हैं। भगवान शिव के जो भारत के कोने कोने में 12 ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्थापित हैं वह भगवान शिव के निराकार ब्रह्म स्वरूप को दर्शाता है। भगवान शिव का अपने अंतःकरण में बृहदेश्वर मंदिर में साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए हमें अपने जीवन में एक अध्यात्मिक सतगुरु की आवश्यकता है। भगवान शिव की अपने भक्तों के उद्धार हेतु की गई प्रत्येक लीला आध्यात्मिक ज्ञान के और हमें अग्रसर करती हैं।
भगवान शिव के जो 12 ज्योतिर्लिंग स्वरूप हैं वह हमें यह संदेश देते हैं कि हमारी देह एक शिवालय है और प्रभु शिव ज्योतिर्लिंग रुप में हमारे भीतर विद्यमान है। हमारे समस्त ग्रंथों में भगवान शिव के वास्तविक स्वरूप को निराकार ओंकार स्वरूप कह करके संबोधित किया। ओंकार स्वरूप को जानकर ही हम अपने जीवन को सार्थक कर सकते हैं। भगवान शिव के हाथ का त्रिशूल शाश्वत नाम, डमरु अनहद संगीत व प्रभु का जटा जूट मुकुट जिसमें चंद्रमा सुशोभित है वह भगवान भोलेनाथ के वास्तविक स्वरूप प्रकाश की ओर इंगित करता है। उनके मस्तक पर सुशोभित गंगा अमृत स्वरूप है।
भगवान शिव का काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग जी वास्तव में हमें घटते भीतर ही स्थित काशी की और उनके करता है भगवान शिव स्वयं अपने मुखारविंद शिव महापुराण में कहते हैं कि मेरी जो काशी नगरी है
अत्यंत दिव्य गोपनीय उत्तर है जिसे केवल मात्र ज्ञान चक्षु के माध्यम से अपने अंतर्गत में उतरते हैं योगी जन देख पाते हैं बिना ज्ञान चक्षु के काशी नगरी का दर्शन कर पाना असंभव है। अपने अंतर्गत में उस प्रकाश स्वरूप परमात्मा को देख उसमें ध्यानमग्न हुए अवस्था में प्राण त्यागने पर ही मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। जिस समय एक साधक अपने इस दे रुपए काशी में भगवान विश्वनाथ स्वरूप के साथ एकाग्र हो जाता है यही वास्तव में अहम ब्रह्मास्मि की अवस्था को प्राप्त करना है। अहम का भाव आत्मा से है और ब्रह्म भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। अपने भीतर उस ईश्वर के तेजोऽअंश को जागृत करवा लेना अहम् ब्रह्मास्मि को प्राप्त कर लेना है। आदि गुरु शंकराचार्य ने इसी अवस्था को प्राप्त कर अपने गुरु से कहा- शिवोहम शिवोहम- मैं ही शिव है, शिव ही मैं हूं।