संयुक्त राष्ट्र के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस वक्त अजीब स्थिति पैदा हो गई जब पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ने भारत पर मुसलमानों को ‘दुश्मन के तौर पर पेश करने’ का आरोप लगाया। बिलावल का आरोप था कि पहलगाम आतंकी हमले को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि भारत में मुसलमानों की छवि को खराब किया जा सके। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद एक वरिष्ठ अमेरिकी पत्रकार अहमद फाथी ने बिलावल को उसी मंच पर ऐसा जवाब दिया कि वो असहज हो उठे और किसी ठोस तर्क के बिना भारत पर एकतरफा आरोप लगाने लगे।

अहमद फाथी ने बिलावल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “सर, मैंने दोनों देशों की ब्रीफिंग देखी हैं और जहां तक मुझे याद है, भारत की ओर से जो प्रेस ब्रीफिंग की गई, उसमें मुस्लिम भारतीय सैन्य अधिकारी भी मौजूद थे।” फाथी के इस कथन का सीधा संकेत भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी की ओर था, जो हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की ओर से प्रमुख सैन्य प्रवक्ता बनी थीं। कर्नल सोफिया कुरैशी न केवल भारतीय सेना की एक प्रतिष्ठित अधिकारी हैं, बल्कि वे एक मुस्लिम महिला होने के नाते विविधता और धर्मनिरपेक्षता की मिसाल भी हैं।
फाथी के इस बयान के बाद बिलावल भुट्टो बौखला गए। उनके पास न तो कोई सटीक जवाब था और न ही तथ्यों की कोई पुष्टि। उन्होंने भारत पर अपने पुराने रटे-रटाए आरोप दोहराने शुरू कर दिए और बातचीत को भटकाने की कोशिश की। लेकिन पत्रकार ने जिस तरह से तथ्य और उदाहरण के साथ अपनी बात रखी, उसने न केवल बिलावल की सोच को उजागर किया बल्कि यह भी दिखा दिया कि भारत में किस प्रकार विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों को समान अवसर मिलते हैं।
कर्नल सोफिया कुरैशी का जिक्र इस संदर्भ में बेहद अहम था। वे भारत की पहली महिला सैन्य अधिकारी थीं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र मिशन की बटालियन का नेतृत्व किया था और हाल ही में उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए भारतीय सेना की रणनीति को पूरी दृढ़ता और स्पष्टता से रखा था। उनकी उपस्थिति न केवल भारत की समावेशी सोच का प्रतीक है बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत अपने सभी नागरिकों को बिना धार्मिक भेदभाव के राष्ट्र सेवा का अवसर देता है।
इस घटनाक्रम ने वैश्विक मंच पर एक बार फिर यह सिद्ध किया कि पाकिस्तान द्वारा बार-बार भारत के खिलाफ फैलाया जाने वाला दुष्प्रचार न केवल तथ्यों से परे होता है बल्कि कई बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा ही नकार दिया जाता है। अहमद फाथी जैसे पत्रकारों की सतर्कता और निष्पक्षता ने यह साबित कर दिया कि सच को झुठलाया नहीं जा सकता, चाहे झूठ कितना भी बार-बार क्यों न बोला जाए।

यह घटना न केवल बिलावल भुट्टो के लिए एक सबक थी, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी संदेश है जो बिना तथ्यों के केवल भावनात्मक आरोपों पर भरोसा करते हैं।Tools