‘सिंदूर तो उजड़ गया’: जया बच्चन के बयान से राज्यसभा में मचा राजनीतिक तूफान

नई दिल्ली। संसद के उच्च सदन राज्यसभा में मंगलवार को उस समय तीखी बहस और राजनीतिक घमासान देखने को मिला जब समाजवादी पार्टी की सांसद और वरिष्ठ अभिनेत्री जया बच्चन ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम पर सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने पूछा कि आखिर इस सैन्य अभियान का नाम “सिंदूर” क्यों रखा गया, जब इस हमले ने कई महिलाओं का सिंदूर उजाड़ दिया?

जया बच्चन ने अपनी बात की शुरुआत 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले में मारे गए 26 लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए की। उन्होंने भावुक स्वर में कहा, “पहले तो मैं उन सभी परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं जिन्होंने इस हिंसक घटना में अपने प्रियजनों को खोया। लेकिन मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि इस ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ क्यों रखा गया। सिंदूर तो उजड़ गया। जिन जवानों की शहादत हुई, उनकी पत्नियों की मांग का सिंदूर छिन गया। ये कैसा नामकरण है?”

जया बच्चन के इस बयान के बाद सत्ता पक्ष के सांसदों ने आपत्ति जताई और बीच में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। इससे आक्रोशित जया ने सदन में दो टूक कहा, “या तो आप बोलें या मैं बोलूं। जब आप बोलते हैं, मैं नहीं बोलती। जब कोई महिला बोलती है, तब मैं कभी टोकती नहीं। कृपया अपनी भाषा पर संयम रखें।”

उनके इस बयान को लेकर संसद से लेकर सोशल मीडिया तक बहस छिड़ गई है। कई लोगों ने जया बच्चन के बयान को भावनात्मक दृष्टिकोण से उचित ठहराया है, वहीं कुछ लोगों ने इसे सेना के ऑपरेशन का अपमान बताया है।

सत्तापक्ष के कई नेताओं ने इस बयान को ‘राजनीतिक ड्रामा’ करार देते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का नाम एक प्रतीक है—जिसका उद्देश्य देश की अस्मिता और सुरक्षा के लिए उठाए गए सख्त कदम को दर्शाना था। एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जया जी को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान देने से पहले सोच-विचार करना चाहिए। ऑपरेशन के नाम पर सवाल उठाना शहीदों के सम्मान का अपमान है।”

दूसरी ओर, विपक्ष के नेताओं ने जया बच्चन के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह एक महिला के दर्द की पुकार है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कांग्रेस सांसदों ने कहा कि नामकरण में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए, विशेषकर तब जब मामला बलिदान और मातम से जुड़ा हो।

अब सवाल उठता है कि क्या संसद में नामकरण को लेकर नीति बननी चाहिए? क्या सैन्य अभियानों के नाम तय करते समय केवल प्रतीकात्मकता देखनी चाहिए या उन शब्दों के सामाजिक-मानसिक प्रभावों को भी समझना चाहिए?

जया बच्चन के बयान ने इस बहस को एक नई दिशा दे दी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर कोई प्रतिक्रिया देती है या नहीं।

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