रिपोर्ट — दीपाली पासी

जिस उम्र में बच्चे अपने मां-बाप से अपनी मांग पूरी करवाने की जिद करते हैं, उस उम्र में पाकिस्तान की एक लड़की ने दूसरी लड़कियों के लिए हक लड़ाई शुरु कर दी। जिसका जवाब तालिबानी आतंकवादियों ने गोलियों से दिया। हम बात करे रहे हैं मलाला यूसुफजई की। जिसे सबसे कम 17 वर्ष की उम्र में शांति का नोबल मिला प्रदान किया गया।


कहानी पाकिस्तान की उस लड़की की जिसे दुनिया मलाला यूसुफजई कहती है।आज के दिन यानि 12 जुलाई को दुनिया ‘मलाला डे’ के नाम से जानती है। इस दिन 16 साल की पाकिस्तानी मूल की मलाला यूसफजई ने संयुक्त राष्ट्र में लड़कियों की शिक्षा पर अपना मशहूर भाषण पेश किया था।
उनके इस भाषण के बाद यूएन मुख्यालय में मौजूद सभी सदस्यों ने तालियां बजाकर उनकी सरहाना की। जिसके बाद पूरी दुनिया में मलाला के भाषण के चर्चे हुए। इस दिन मलाला अपना जन्मदिन भी मनाती हैं। आज के दिन को संयुक्त राष्ट्र ने ‘मलाला डे’ घोषित किया।


उनका जन्म 12 जुलाई 1997 में पाकिस्तान के खैबर पख्‍तूनख्‍वाह प्रांत के स्वात जिले में हुआ। अक्टूबर 2012 में महिलाओं की शिक्षा की मांग करते हुए तालिबान की गोली का शिकार हुई मलाला इस हमले में गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए लंदन ले जाया गया।


मलाला के हौसले को देखते हुए उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। पाकिस्तान सरकार ने 2012 ने नेशनल यूथ पीस अवॉर्ड से नवाजा था। वहीं 2014 में 17 साल की मलाला शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की शख्स थीं। हाल ही में उन्हें प्रतिष्ठित कनाडियन सिटिजनशिप अवॉर्ड भी मिला है।

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