रिपोर्ट — दीपाली पासी

विश्व में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन से किसी स्थान पर सूखा पड़ रहा है तो किसी स्थान पर बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। प्राकृतिक संसाधन जैसे पेड़ की कटाई, खनन के कारण होने वाले जंगलों की कटाई, कारखाने लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों और वनों को कटा जा रहा है।हर साल 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इसके माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा को लेकर जागरूकता पैदा की जाती है। एक स्वस्थ माहौल स्थिर और उत्पादक समाज की बुनियाद है। इस विचार पर ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस आधारित है। इसके माध्यम से हमारी मौजूदा और भावी पीढ़ियों का कल्याण भी सुनिश्चित किया जाता है।


इसको मनाने का उद्देश्य लोगों को इसके प्रति जागरूक करना है। एक स्वस्थ समाज होने के लिए पर्यावरण का होना जरूरी है। पर्यावरण हमारी पृथ्वी को संतुलित बनाये है। जंगलों में जंगली जानवर, कई तरह के जड़ी-बुटी तथा आदि मानव का निवास स्थान होता है। किन्तु कुछ लोग अपने लाभ के लिए वनों और जंगलों को काट देते है। लेकिन उन्हें इस बात की कोई चिन्ता नहीं होती है कि ये जंगली जानवर कहां जाये।1992 में रियो डि जेनेरियो (ब्राजील) में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में प्रकृति संरक्षण की बात की गयी। इस सम्मेलन में जैव-विविधता की मानक परिभाषा अपनाई गई।


जैव-विविधता समस्त स्रोतों, यथा- अंतर्क्षेत्रीय, स्थलीय, सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों को सुरक्षित रखना। विश्व में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बढ़ता तापमान भी पर्यावरण के लिए काफी उत्तरदायी है। ग्लोबल वॉर्मिंग से समुद्र में स्थित कई द्वीप व द्वीपीय देश डुबने के कगार पर है।
इसी को देखते हुए 1992 में ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें 174 देशों ने भाग लिया। 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए कई उपाय सुझाए गए। और तापमान को 1.5 तक लाने का प्रयास है।
जीव जंतु और वनस्पति की रक्षा का विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर संकल्प लेना ही इसका उद्देश्य है।

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